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प्रकरण ४
ऐतिहासिक साहित्य
किसी भी वस्तु का मूल्य उस वस्तु के इतिहास-ज्ञान के अभाव में आँका नहीं जा सकता। इसलिए प्रत्येक वस्तु या विषय के मूल्यांकन के लिए इतिहासज्ञान आवश्यक हो गया है । इतिहास-ज्ञान से हमें अनेक समस्याओं को सुलझाने में बड़ी सहायता मिलती है। प्रत्येक देश, धर्म, संस्कृति, जाति आदि के इतिहास ने मानव-मस्तिष्क की अनेक समस्याओं को सुलझाया है। इतिहास जानने की अनेकविध सामग्री होती है। वह कथा-कहानी जैसा कहीं लिखा नहीं मिलता। किसी भी देश या धर्म का इतिहास उस देश के राजा-रानियों या धर्माधिकारियों की वंशावलियों का ज्ञान कर लेना मात्र नहीं है बल्कि उन सभी परिस्थितियों का अध्ययन करना है जिन्होंने उस देश को गौरव प्रदान किया है। इस दृष्टिकोण से भारतवर्ष के इतिहास को देखें तो वह एक प्रकार से नाना जातियों के संमिश्रण और अनेकों संस्कृतियों के आदान-प्रदान का इतिहास ही है । सर्वाङ्गीण भारतीय इतिहास जानने के लिए अन्य सामग्रियों के साथ ब्राह्मण, जैन, बौद्ध साहित्य का तुलनात्मक एवं समन्वयात्मक अध्ययन आवश्यक है। इसके अध्ययन के बिना जो भो इतिहास लिखा गया है वह एकांगी तथा अपरिपूर्ण है। इस साहित्यत्रयी के अध्ययन के अभाव में इतिहास प्रस्तुत करने वाली अन्य सामग्रियों-अभिलेखों, प्राचीन मुद्राओं, चित्रों तथा स्थापत्योंको बड़ी भ्रामक व्याख्याएँ हुई हैं तथा जिस वर्ग की जब प्रभुता हुई उसने तब अपने वर्ग की छाप लगा दी है। भावी इतिहासज्ञों का काम उन भूलों को सुधारना है तथा उक्त अध्ययन से भारतीय इतिहास के लिए निष्पक्ष एवं स्वस्थ सामग्री प्रस्तुत करना है।
जैन ऐतिहासिक सामग्री के विविध अंग हैं। विशाल आगम साहित्य और जैन पुराणों एवं कथाओं में अनेक प्रकार की अनुश्रुतियाँ पड़ी हैं जिनका
१. डा. मोतीचन्द्र, कुछ जैन अनुश्रुतियाँ और पुरातत्त्व, पं. नाथूराम प्रेमी
अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० २२९ प्रभृति.
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