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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
आगे एक पद्य में हेमचन्द्र ने कहा है कि यशोवर्मा को हरा देने के बाद सिद्धराज जयसिंह ने अनेक सीमावर्ती राजाओं को हरा दिया। उनमें से एक-एक की तुलना भिन्न-भिन्न प्राणियों से की गई है और कहा गया है कि सिद्धराज ने उन्हें वैसे ही बाँधा जैसे उन पशु-पश्चियों को बाँधा जाता था। यद्यपि इस पद्य में, जैसा कि हम दूसरे उपादानों से जानते हैं, संस्कृत काव्य के अनुकूल वेश में ठीक सूचना दी गई है परन्तु अगला पद्य तो ६. १. ८१-९६ के केवल उदाहरणों के रूप में है। उससे कुछ ऐतिहासिक तथ्य निकालना सचमुच में भ्रान्ति है। इस प्रकार के अनेक पद्य हैं। उदाहरण के लिए हेमचन्द्र कहते हैं कि ग्राहरिपु की पत्नी का नाम नीली था ( ४. ४८)। यहाँ सहसा सन्देह होता है, क्योंकि हेमचन्द्र से यह आशा करना कठिन है कि वे उस रानी का नाम जाने जिसका पति मूलराज के द्वारा १०वीं शती ई० में पराजित किया गया हो । उनकी सूचना के स्रोतों की हम सुगमता से तलाश कर सकते हैं। हेमचन्द्र ने अपने एक सूत्र २. ४. २४ के उदाहरण में अपनी लघुवृत्ति में भी नीली शब्द दिया है । लघुवृत्ति द्वथाश्रयकाव्य से पहले रची गई थी। यह स्पष्ट है कि नीली की कोई यथार्थ सत्ता नहीं, वह केवल व्याकरण के सूत्र का उदाहरण प्रस्तुत करने की सुविधा एवं आवश्यकता के लिए निष्पन्न किया गया है।
पुनः एक दूसरे प्रसंग में हेमचन्द्र ने निर्देश किया है कि मूलराज के तीन मित्र नृप थे-रेवतीमित्र, गंगमह और गंगामह (४. १.२), पर लधुवृत्ति को देखने पर हम पाते हैं कि वे एक सूत्र २. ४. ९९ के उदाहरणरूप हैं। चूंकि ऐसे संयोग और नाम दुर्लभ हैं इसलिए बहुत सम्भव है कि ऐसे नामधारी मूलराज के मित्र नृप नहीं थे। यह संभावना और भी दृढ हो जाती है जब हम देखते हैं कि लक्ष्मीकर्ण के दरबार में भीम का दूत डींग मारता है कि भीम के मित्र नृप बहुत थे जिनके विचित्र नाम यन्ति, रन्ति, नन्ति, गन्ति, हन्ति आदि थे ( ९.३६)। यथार्थतः ये शब्द अपनी लघुवृत्ति में हेमचन्द्र ने 'न ति कि दीर्घश्च' सूत्र के उदाहरणरूप में प्रस्तुत किये हैं जिनमें 'इ' को दीर्घ न करने का निर्देश है। स्पष्ट है कि इस पद्य का कोई ऐतिहासिक महत्त्व नहीं है।
हेमचन्द्र के समकाल में आने पर हम देखते हैं कि कुमारपाल के विरुद्ध लडनेवाले अर्णोराज के मित्र नृपों के नाम लघुवृत्ति में अनेकों सूत्रों (६. ३. ६.२५ ) के उदाहरणरूप में दिये गये है परन्तु चाहड का नाम, जिसने हेमचन्द्र के अनुसार भी कुमारपाल के विरुद्ध अर्णोराज का पश्च लिया था, व्याकरण के किसी सूत्र के उदाहरण के रूप में नहीं दिया गया। अनेक इतिहास-ग्रन्थों का
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