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कथा-साहित्य
३६७ रची गई थी। कनककुशल अनेक लघुकाय ग्रन्थों के लेखक थे जिनका उल्लेख कर चुके हैं।
इस कथा को लेकर माणिक्यचन्द्र के शिष्य दानचन्द्र ने भी सं० १७०० में ज्ञानपंचमीकथा ( वरदत्त-गुणमंजरीकथा) का निर्माण किया । अठारहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध ग्रंथकार एवं कवि उपाध्याय मेघविजय (वि० सं० १७०९१७६०) ने श्रुतपंचमी-माहात्म्य पर २०४२ पद्यों का भविष्यदत्तचरित' लिखा जो २१ अधिकारों में विभक्त है। इसमें पद्यों के बीच-बीच में हितोपदेश, पंचतंत्र आदि ग्रन्थों से सुभाषित उद्धृत किये गये हैं। इसे अनुप्रास, यमकादि शब्दालंकारों से विभूषित किया गया है। मेघविजय उपाध्याय का परिचय और उनकी कृतियों का उल्लेख कई प्रसङ्गों में किया जा चुका है। कुछ विद्वानों ने इसे धनपालकृत २००० गाथा-प्रमाण अपभ्रंश भविसत्तकहा (२२ संधियाँ) का संस्कृत रूपान्तर माना है।
उन्नीसवीं सदी में खरतरगच्छीय क्षमाकल्याण उपाध्याय (सं० १८२९-६५) ने ज्ञानपंचमी के माहात्म्य पर संस्कृत गद्यपद्यमय सौभाग्यपंचमी कथा रची। इसका पद्यभाग तो कनककुशलकृत एतद्विषयक रचना से लिया है और गद्य स्वयं रचा है। क्षमाकल्याण द्वारा रचित अन्य व्रतकथाएँ भी मिलती हैं : अक्षयतृतीयाकथा, मेरुत्रयोदशीकथा, मौनएकादशीकथा, रोहिणीकथा आदि ।
एतद्विषयक अन्य रचनाओं में जिनहर्षकृत (अज्ञातसमय ), पार्श्वचन्द्रकृत, सुन्दरगणिकृत, मंजुसूरिकृत, मुक्तिविमलकृत (वि० सं० १९६९ में १०२ संस्कृत पद्यों में) तथा कई अज्ञातकतृक कृतियाँ मिलती हैं।
१. जिनरत्नकोश, पृ० १.८. २. हिम्मत ग्रन्थमाला, अंक १ में पं० मफतलाल झवेरचन्द्र गांधी द्वारा ___ सम्पादित, गुजराती अनुवाद-अहमदाबाद से प्रकाशित. ३. प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० ४४१ पर टिप्पण. ४. जिनरत्नकोस, पृ० ८५, १४८, २२६, ३४१. ५. दयाविमल ग्रन्थमाला, अहमदाबाद.
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