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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रचना बनाई थी। ये देवचन्द्रसूरि सुप्रसिद्ध कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र के गुरु थे।
दूसरी रचना के रचयिता महेन्द्रसूरि हैं। इसमें १११७ गाथाएँ हैं । बीचबीच में कितना ही गद्यभाग है इससे इसका ग्रन्थान १७५० श्लोक-प्रमाण है। महेन्द्रसूरि ने लिखा है कि उन्होंने यह मूलकथा शान्तिसूरि नामक आचार्य के मुख से सुनी थी। साहित्यिक कृति के रूप में महेन्द्रसूरिवाली कथा का मूलाधार देवचन्द्रसूरिकृत उपर्युक्त रचना होना सम्भव है। इसकी रचना सं० ११८७ में हुई थी। महेन्द्रसूरि की गुरुपरम्परा एवं अन्य रचनाओं के सम्बन्ध में विशेष मालूम नहीं है।
महेन्द्रसूरि की रचना बहुत सरल, प्रासादिक और सुबोधात्मक है। कथा की घटना बच्चे से बूढे तक हृदयंगम कर सकते हैं, ऐसी सरसरीति से वह कही गई है। बीच-बीच में लोकोक्ति और सुभाषितों की छटा भी देखते बनती है। प्राकृत भाषा के अभ्यासियों के लिए यह सुन्दर रचना है। महेन्द्रसूरि ने यह रचना अपने शिष्य की अभ्यर्थना से ही बनाई थी। इसकी प्रथम प्रति उनके शिष्य शीलचन्द्रगणि ने तैयार की थी।
कुछ अज्ञातकर्तृक नर्मदासुन्दरीकथाएँ भी मिली हैं। एक में २४९ गाथाएँ हैं । एक अज्ञातकर्तृक रचना प्रकाशित भी हुई है। ___ मनोरमाचरित-मनोरमा की कथा जिनेश्वरसूरिकृत कहाणयकोस (सं० ११०८ ) में दी गई है। इसमें बतलाया गया है कि श्रावस्ती का राजा किसी नगर के व्यापारी की पत्नी को अपनी रानी बनाना चाहता है। वह सफल भी हो जाता है किन्तु अन्त में देवताओं द्वारा मनोरमा के शील की रक्षा की जाती है ।
इस कथा को स्वतंत्र विशाल प्राकृत रचना के रूप में बनाया गया है जिसका परिमाण १५००० गाथाएं हैं। इसकी रचना नवांगी टीकाकार अभयदेव के शिष्य वर्धमानाचार्य ने सं० ११४० में की है। वर्धमानाचार्य की अन्य रचनाओं में आदिनाहचरिय (सं० ११६० ) और धर्मरत्नकरण्डकवृत्ति ( सं० १९७२) मिलती हैं।
.. जिनरत्नकोश, पृ. २०५, सिंघी जैन ग्रन्थमाला बम्बई, सं० २०१६. २. वही; हंसविजय फ्रो लाइब्रेरी, महमदाबाद, १९१९. ३. वही, पृ० १०१, जैन ग्रन्थावलि (श्वेताम्बर जैन कान्फरेन्स, बम्बई),
पृ. २२९.
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