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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नन्दयतिकथा-यह ६०० ग्रन्थान परिमाणवाली अज्ञातकतक रचना है। इसमें बताया है कि नन्द राजकुमार साधु हो जाने पर भी अपनी सुन्दरी का ही ध्यान किया करता था; नन्द का भाई अपने कई चमत्कारपूर्ण कार्यों द्वारा नन्द को सुन्दरी से विरक्त करता है। एतद्विषयक एक नन्दोपाख्यान भी मिलता है।
__ यह कथा हरिभद्रकृत उपदेशपद की टीका ( मुनिचन्द्रकृत ) में आई है। यह महाकवि अश्वघोषकृत सौन्दरनन्द की कथावस्तु का ही अनुकरण लगता है। ___ हंसराज-वत्सराजकथा-पुण्य के फल से रूप, आयु, कुल, बुद्धि आदि मिलते हैं। पुण्य के ही फल को बतलाने के लिए हंसराज-वत्सराज नरेशों के चरित वर्णित किये गये हैं।
इस कथा पर मलधारीगच्छ के गुणसुन्दरसूरि के शिष्य सर्वसुन्दरसूरि ने एक कृति सं० १५१० में लिखी । इसे कथासंग्रह भी कहते हैं ।
दूसरी कृति वाचक राजकीर्तिकृत है जो १०५० ग्रन्थाग्ररूप में है। एक अशातकतृक रचना में २४६ श्लोक हैं । गुजराती में जिनोदयसूरि (सं० १६८०) कृत हंसराजवच्छराजरास मिलता है। __ धनदचरित-जैन कथा और इतिहास में धनद नामक कई व्यक्ति हो गये हैं। धन्यशालिभद्र के धन्यकुमार को भी धनद कहा गया है और गुजराती में इसके चरित पर धनदरास बने हैं। हरिषेण के कथाकोश में भी असत्यपरिहार के लिए एक धनद की कथा दी गई है। मध्यकाल में शतकत्रय के रचयिता धनदराज श्रावक को भी धनद कहा गया है।
धनदचरित्र नाम की तीन रचनाएँ अब तक मिली हैं। एक अज्ञातकर्तृक धनदकथानक ४०० श्लोक-प्रमाण है जो 'भत्रैव सुविस्तीर्ण पद से प्रारम्भ होती है। दूसरी कृति सं० १५९० में हुमायूँ बादशाह के राज्य में काष्ठसंघीय श्री गुण
१. जिनरत्नकोश, पृ० १९९. २. वही, पृ० २०.. ३.६. वही, पृ०४५८. ७. वही, पृ० १८६.
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