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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास पुण्यसारकथा या पुण्यधनचरित-जिनरत्नकोश के अनुसार ये दोनों शीर्षक एक ही कृति के हैं। यह १३११ श्लोक-प्रमाण रचना है। इसमें जीवदया के माहात्म्य को बतलाया गया है। इसकी रचना शुभशीलगणि ने की है। इनकी भरतेश्वरबाहुबलिवृत्ति आदि अनेकों कृतियाँ मिलती हैं।
पुण्यसारकथा-सार्मिक वात्सल्य के फल को प्रकट करने लिए श्रेष्ठिपुत्र पुण्यसार की कथा कही गई है।
इस कथा पर अनेक रचनाएँ मिलती हैं।
प्रथम रचना' जिनेश्वरसूरि के शिष्य वाचनाचार्य विवेकसमुद्रगणिविरचित है। इसकी रचना सं० १३३४ में जैसलमेर में हुई थी। इसमें ३४२ संस्कृत श्लोक हैं । इस कथा का संशोधन जिनप्रबोधसूरि ने किया है। विवेकसमुद्र की अन्य रचना नरवर्मचरित भी मिलती है ।
इस कथा पर अजितप्रभसूरि और भावचन्द्रकृत' संस्कृत कृतियाँ भी मिलती हैं।
पुरन्दरनृपकथा-निरतिचार-संयम तथा उग्रशीलव्रत का पालन करने में पुरन्दर नृप का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। इस कथा पर कई रचनाएँ हैं।
एक कृति देवेन्द्रसूरिकृत है जिसका रचनाकाल ज्ञात नहीं है। दूसरी है भावदेवसूरि के शिष्य ब्र० मालदेवकृत । मालदेव की गुजराती रचना भी सं० १६६९ की मिलती है। एक अज्ञातकर्तृक पुरन्दर नृपचरित्र प्राकृत में मिलता है। ब्र श्रुतसागर ने भी पुरन्दरविधिकथोपाख्यान लिखा है। गुजराती में एतद्विषयक कई रचनाएँ मिलती हैं।
सदयवत्सकुमारकथा-सत्पात्रदान और अभयदान के माहात्म्य को प्रकट करने के लिए संस्कृत और गुजराती में उक्त कुमार पर कई कथाएँ लिखी गई
१. जिनरत्नकोश, पृ० २५१; नानजीभाई पोपटचन्द्र द्वारा महावीर जैन सभा,
सम्भात के लिए सन् १९१९ में प्रकाशित. २-३. वही, पृ० २५१, २५२, इनमें से पहली जिनदत्तसूरि ज्ञानभण्डार
कार्यवाहक, सूरत से सं० २००१ में प्रकाशित तथा भावचन्द्रकृत हीरा
लाल हंसराज, जामनगर से सन् १९२५ में प्रकाशित. ४-७. वही, पृ० २५२-२५३. 6. जेन गुर्जर कविमो, भाग १, पृ० ३०८-३०९.
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