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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पात्रकेशरिकथा-दिग० मुनि पात्रकेशरी की कथा पर भट्टारक मल्लिषेण ( १६वीं शताब्दी) की रचना उपलब्ध होती है।' पात्रकेशरी के विषय में पं० जुगलकिशोर मुख्तयार ने माना है कि ये बौद्ध तार्किक धर्मकीर्ति और मीमांसक कुमारिल के प्रायः समकालीन थे। पात्रकेशरी द्वारा रचित जिनेन्द्रगुणसम्पत्ति, पात्रकेशरिस्तोत्र और न्यायग्रन्थ त्रिलक्षणकदर्थन का उल्लेख मिलता है ।
मंग्वाचार्यकथा-आर्य मंगु को पाश्वस्थ भिक्षु कहा गया है। मथुरा में सुभिक्षा प्राप्त होने पर भी आहार का कोई प्रतिबंध नहीं रखते थे। इनकी कथा उपदेशमाला और उपदेशप्रासाद में आई है। उन्हीं के विषय में उक्त कथाकृति उपलब्ध है। रचयिता का नाम एवं रचनाकाल ज्ञात नहीं है ।
इलाचीपुत्रकथा-भावना या भावशुद्धि के महत्व को बतलाने के लिए इलाचीपुत्र की कथा दी गई है। यह कथा कथाकोशों में वर्णित है।
प्रस्तुत रचना प्राकृत में निबद्ध है। रचयिता का नाम एवं रचनाकाल अज्ञात है।
अनाथमुनिकथा-अनाथ मुनि की कथा उत्तराध्ययन में आई है। इनके पिता धनाढ्य थे। पर ये बाल्यकाल में नाना रोगों से ग्रस्त थे । इनकी वेदना को कोई न बँटा सका। अत्यन्त निराश हो उन्होंने सोचा-'यदि मैं इस वेदना से मुक्त हो जाऊँ तो प्रव्रज्या स्वीकार कर लूँगा'। वे रोगमुक्त होकर दीक्षित हो गये और राजगृह के मण्डि कुक्षि चैत्य में राजा श्रेणिक को सनाथ और अनाय का अर्थ समझाया । उक्त कथानक पर अज्ञातकर्तृक रचना मिलती है। गुजराती में एतद्विषयक अनेक काव्य मिलते हैं।
प्रदेशी या परदेशीचरित-रायपसेणिय सूत्र में राजा प्रदेशी और कुमारश्रमण केशी का रोचक कथानक दिया गया है। यह परवर्ती लेखकों को बड़ा रोचक लगा। इस पर प्राकृत, संस्कृत और गुजराती में अनेकों रचनाएँ लिखी गई हैं।
१. जिनरत्नकोश, पृ० २४३. २. वही, पृ० ३००. ३. वही, पृ०, ४०. ४. वही, पृ० ७. .५. जैन गुर्जर कविओ, भाग ३, पृ० ४०८, ६०२, ६४६ आदि.
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