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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास मृगध्वजचरित-हिंसा के दोष से बचने के लिए तीव्र तपस्या कर कैवल्य प्राप्त करनेवाले राजपुत्र मृगध्वज की कथा' वृहत्कथाकोश ( हरिषेणकृत ) में दी गई है।
स्वतंत्र रचना के रूप में खरतरगच्छीय पद्मकुमार ने ८३ गाथाओं में इसकी रचना की है। रचनासमय अज्ञात है पर गुजराती में इन्हीं पद्मकुमारकृत मृगध्वजचौपाई मिलती है जिसका रचनाकाल सं० १६६१ दिया गया है।
प्रीतिकरमहामुनिचरित-प्रीतिकर मुनि के चरित्र पर दो दिग० कवियों की संस्कृत रचनाएँ मिलती हैं। ब्रह्म नेमिदत्त की कृति में पाँच सर्ग हैं। इसकी प्राचीन प्रति सं० १६४५ की मिली है। दूसरी रचना संस्कृत में भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति की मिलती है । उसका रचनासमय ज्ञात नहीं है। नरेन्द्रकीर्ति सत्रहवीं शती के अन्तिम तथा अठारहवीं के प्रथम दशक के विद्वान् थे।
आरामनन्दनकथा-पंच णमोकार मन्त्र के प्रभाव से अनेक सुख मिलते हैं, भवपार हो जाता है, देवगति मिलती है। यह कथा णमोकार मन्त्र का माहात्म्य बतलाने के लिए संस्कृत ६०५ श्लोकों में रची गयी है। रचना-समय ज्ञात नहीं पर इस रचना के आधार पर सं० १५८७ में सांडेरगच्छ के धर्मसागर के शिष्य चउहथ ने गुजराती में आरामनन्दनचौपई की रचना की है।
अजापुत्रकथानक-पुण्य से साहस, सद्भाव, कीर्ति आदि सभी मिलते हैं । दृष्टान्तस्वरूप अनापुत्र की कथा पर दो रचनाएँ मिलती हैं। एक अज्ञातकर्तृक ५६१ श्लोकों में है और एक गद्य में। एक के कर्ता जिनमाणिक्य हैं और दूसरी के माणिक्यसुन्दरसूरि ( १६वीं शती)। इस पर गुजराती में कई रास भी मिलते हैं।'
1. कथा सं० १२१. २. जिनरत्नकोश, पृ. ३१३. ३. जैन गुर्जर कविओ, भाग १, पृ० ४६२. ४. जिनरत्नकोश, पृ० २८१. ५. वही, पृ० ३३. ६. जैन गुर्जर कविओ, भाग ३, पृ० ५७८. ७. जिनरस्नकोश, पृ० २. ८. जैन गुर्जर कविमओ, भाग ३, पृ० ५३७, ५३८.
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