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कथा-साहित्य
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युवावस्था में भाग्यवश दोनों का विवाह हो गया । कुछ दिनों बाद मृगांक पुरानी बात याद आई और उसने बदला लेना चाहा। पहले तो वह उसे छोड़ परदेश जाना चाहता था पर वह भी साथ हो ली । जलमार्ग से जाते हुए एक द्वीप में रात्रि को वह पद्मावती को सोता हुआ छोड़ देता है । कष्टों को पार करती हुई पद्मावती एक विद्याधर से अदृश्य होने, रूप बदलने और दूसरे की विद्या नष्ट करने की विद्या पा जाती है। इन्हीं विद्याओं के सहारे वह पुरुषवेश धारणकर सुसुमारपुर में रहने लगती है और वहाँ राजपुत्रों को पढ़ा, चुंगी वसूल करनेवाले आफीसर का काम तथा अनेक अद्भुत काम करती है । मृगांक भी भाग्य का मारा वहाँ आया । चुंगी ( शुल्क ) की चोरी के बहाने से पद्मावती ने उसे खूब तंग किया और बदला लिया पर सब प्रेमसिक्त भाव से । अन्त में मृगांक से दीनता प्रकट कराके उसने अपना असली रूप प्रकट किया ।
वह पीछे राजा का दामाद हो राज्यपद भी पा सका । एक बार एक मुनि से विपत्ति और सम्पत्ति के इस परिवर्तन को उसने पूछा और उन्होंने पूर्वजन्म में पात्रदान देने पर भी पीछे कुभाव और फिर सुभाव लाना ही कारण बतलाया ।
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इस कथा पर मृगांककुमारकथा नामक अज्ञातकतृ के रचना' तथा २८३ संस्कृत पद्यों में लिखा मृगांकचरित्र' मिलता है। इस द्वितीय कृति के लेखक पण्डित ऋद्धिचन्द्र हैं जो अकबर और जहाँगीर के दरबार में ख्यातिप्राप्त उपाध्याय भानुचन्द्र के सुयोग्य शिष्य थे । इसे विद्वान् उदयचन्द्र ने शुद्ध किया था।
धर्मदत्तकथानक या चन्द्रधवल- धर्मदत्तकथा - यह एक धर्मकथा के रूप में परिवर्तित कर अतिथिसंविभाग व्रत के के लिए उपयोग किया गया है ।
कथावस्तु — इस कथा में दो नायक हैं : चन्द्रधवल नृप और धर्मदत्त श्रेष्ठी । धर्मदत्त को एक योगी की कृपा से सुवर्णपुरुष प्राप्त होने वाला था कि बीच में चन्द्रधवल ने उसे छिपा दिया । पीछे उसे भी एक बड़ा हिस्सा दिया गया । दोनों ने एक मुनि से पूछा कि इसका कारण क्या है तो मुनि ने पूर्वजन्म की बात
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लौकिक कथा है जिसे माहात्म्य को दिखाने
१- २. जिनरत्नकोश, पृ० ३१३; सूरत से १९१७ में प्रकाशित; जैन भात्मवीर सभा (सं० ५ ), भावनगर, सं० १९७३ ; हिन्दी अनुवाद - यशोधर्ममन्दिर, दिल्ली द्वारा प्रकाशित.
३. प्रशस्ति, पद्य २८४-२८८.
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