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जैन साहित्य का धृहद् इतिहास चरित्र का कथानक तो बहुत संक्षिप्त है पर वर्णन और प्रासंगिक कथाओं से यह बड़ा हो गया है।
द्वितीय प्राकृत गाथाओं में संक्षिप्त रचना है। इसमें ६४६ गाथाएँ हैं जिनका प्रमाण ८०५ श्लोक है।' इसकी रचना सं० ११७२ में बृहद्गच्छीय मानदेव के प्रशिष्य एवं उपाध्याय जिनपति के शिष्य हरिभद्रसूरि ने की है। हरिभद्रसूरि की अन्य कृतियाँ: श्रेयांसचरित्र, प्रशमरतिवृत्ति, क्षेत्रसमासवृत्ति एव बधस्वामित्व-षडशीतिकर्मग्रन्थवृत्ति मिलती हैं।
तृताय रचना सस्कृत गद्य में है। यह हरिभद्रसूरि के प्राकृत चरित्र पर से ही संस्कृत गद्य में रचा गया है। वास्तव में यह उसका अनुवाद मात्र है और उससे लघु है । जिनरत्नकोश के अनुसार इसके रचयिता धर्मविजयगणि है ।' ____ चतुर्थ रचना नयनन्दिसूरिकृत ग्रन्थाग्र ६२५ प्रमाण का उल्लेख मिलता
___पंचम रचना संस्कृत गद्य में है और इसमें प्रासंगिक कथाएँ इतनी अधिक हैं कि इसका प्रमाण दोनों चरित्रों से बड़ा हो गया है। इस ग्रन्थ की भाषा अस्त-व्यस्त है । इसके रचयिता का नाम अज्ञात है।"
एक मुनिपतिचरित्रसारोद्धार नामक संस्कृत कृति का भी उल्लेख मिलता है।
गजसुकुमालकथा-गजसुकुमाल को गजकुमार भी कहा जाता है। इनकी कथा अन्तकृतदशांग में आई है। ये देवकी के अन्तिम पुत्र थे। इनका उदाहरण तप की चरम आराधना, मनुष्यकृत उपसर्ग को अचल भाव से सहने और क्षमा की उच्चकोटि की परिणति के लिए अनेक कथाग्रन्थों में आता है।
इस पर संस्कृत में एक अज्ञातकर्तृक रचना का उल्लेख मिलता है।
१. जिनरत्नकोश, पृ० ३००, ३१०. २. नयणमुणिरुद्दसंखे विक्कमसंवच्छ रंभिवच्चन्ते (१९७२)।
भद्दवय पंचमिए समस्थिभं चरित्तमिणमोत्ति ॥ ३. जिनरत्नकोश, पृ० ३११. ४. वही. ५. मणिपतिराजर्षिचरित की प्रस्तावना, हेमचन्द्र ग्रन्थमाला, सं० १९७८;
हीरालाल हंसराज, जामनगर द्वारा सम्पादित एवं प्रकाशित. ६. जिनरत्नकोश, पृ० ३११. ७. वही, पृ० १०२.
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