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________________ २९० जैन साहित्य का धृहद् इतिहास चरित्र का कथानक तो बहुत संक्षिप्त है पर वर्णन और प्रासंगिक कथाओं से यह बड़ा हो गया है। द्वितीय प्राकृत गाथाओं में संक्षिप्त रचना है। इसमें ६४६ गाथाएँ हैं जिनका प्रमाण ८०५ श्लोक है।' इसकी रचना सं० ११७२ में बृहद्गच्छीय मानदेव के प्रशिष्य एवं उपाध्याय जिनपति के शिष्य हरिभद्रसूरि ने की है। हरिभद्रसूरि की अन्य कृतियाँ: श्रेयांसचरित्र, प्रशमरतिवृत्ति, क्षेत्रसमासवृत्ति एव बधस्वामित्व-षडशीतिकर्मग्रन्थवृत्ति मिलती हैं। तृताय रचना सस्कृत गद्य में है। यह हरिभद्रसूरि के प्राकृत चरित्र पर से ही संस्कृत गद्य में रचा गया है। वास्तव में यह उसका अनुवाद मात्र है और उससे लघु है । जिनरत्नकोश के अनुसार इसके रचयिता धर्मविजयगणि है ।' ____ चतुर्थ रचना नयनन्दिसूरिकृत ग्रन्थाग्र ६२५ प्रमाण का उल्लेख मिलता ___पंचम रचना संस्कृत गद्य में है और इसमें प्रासंगिक कथाएँ इतनी अधिक हैं कि इसका प्रमाण दोनों चरित्रों से बड़ा हो गया है। इस ग्रन्थ की भाषा अस्त-व्यस्त है । इसके रचयिता का नाम अज्ञात है।" एक मुनिपतिचरित्रसारोद्धार नामक संस्कृत कृति का भी उल्लेख मिलता है। गजसुकुमालकथा-गजसुकुमाल को गजकुमार भी कहा जाता है। इनकी कथा अन्तकृतदशांग में आई है। ये देवकी के अन्तिम पुत्र थे। इनका उदाहरण तप की चरम आराधना, मनुष्यकृत उपसर्ग को अचल भाव से सहने और क्षमा की उच्चकोटि की परिणति के लिए अनेक कथाग्रन्थों में आता है। इस पर संस्कृत में एक अज्ञातकर्तृक रचना का उल्लेख मिलता है। १. जिनरत्नकोश, पृ० ३००, ३१०. २. नयणमुणिरुद्दसंखे विक्कमसंवच्छ रंभिवच्चन्ते (१९७२)। भद्दवय पंचमिए समस्थिभं चरित्तमिणमोत्ति ॥ ३. जिनरत्नकोश, पृ० ३११. ४. वही. ५. मणिपतिराजर्षिचरित की प्रस्तावना, हेमचन्द्र ग्रन्थमाला, सं० १९७८; हीरालाल हंसराज, जामनगर द्वारा सम्पादित एवं प्रकाशित. ६. जिनरत्नकोश, पृ० ३११. ७. वही, पृ० १०२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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