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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कथानकों का संग्रह हो गया है। इसी तरह हरिभद्रसूरि के उपदेशपद पर विवृतियों में कथाओं का एक विशाल जाल बुना गया है। ये कथाएँ यद्यपि प्राचीन जैन ग्रन्थों से ली गई हैं फिर भी इनके कथन का ढंग निराला है। इसी तरह जयसिंहसूरि (वि० सं० ९१५) कृत धर्मोपदेशमालाविवरण में १५६ कथाएँ समाविष्ट की गई हैं जो संयम, दान, शील आदि का माहात्म्य और रागद्वेषादि कुभावनाओं के दुष्परिणामों को व्यक्त करती हैं। विजयलक्ष्मी (सं० १८४३) कृत उपदेशप्रासाद' में सबसे अधिक ३५७ कथानक मिलते हैं। इस तरह औपदेशिक कथा-साहित्य के अच्छे संग्रह रूप में जयकीर्ति की शीलोपटेशमाला, मलधारी हेमचन्द्र की भवभावना और उपदेशमालाप्रकरण, वर्धमानसूरि का धर्मोपदेशमालाप्रकरण, मुनिसुन्दर का उपदेशरत्नाकर, आसड की उपदेशकंदली और विवेकमंजरीप्रकरण, शुभवर्धनर्माण की वर्धमानदेशना, जिनचन्द्रसूरि की संवेगरंगशाला तथा विजयलक्ष्मी का उपदेशप्रासाद है । दिगम्बर साहित्य में यद्यपि ऐसे औपदेशिक प्रकरणों की कमी है जिन पर कथा-साहित्य रचा गया हो फिर भी कुन्दकुन्द के षटप्राभूत की टीका में, वट्टकेर के मूलाचार, शिवार्य की भगवतीआराधना तथा रत्नकरण्डश्रावकाचारादि की टीकाओं में औपदेशिक कथाओं के संग्रह उपलब्ध होते हैं।
औपदेशिक कथा-साहित्य के अनुकरण पर अनेक कथाकोश और संग्रहों का भी निर्माण हुआ है। उनमें हरिषेण का बृहत्कथाकोश प्राचीन है।
बृहत्कथाकोश-उपलब्ध कथाकोशों में यह सबसे प्राचीन है। इसमें छोटीबड़ी सब मिलाकर १५७ कथाएँ हैं। ग्रन्थ-परिमाण साढ़े बारह हजार श्लोकप्रमाण है।' इन कथाओं में कुछ कथाएँ चाणक्य, शकटाल, भद्रबाहुस्वामी, कार्तिकेय आदि ऐतिहासिक राजनीतिक पुरुषों और आचार्यों से सम्बंधित हैं
१. डा. जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ. ४९०-५२४. __ इसमें उक्त साहित्य की अनेकों कथानों की विशेषता प्रतिपादित है।। २. जैनधर्म प्रसारक सभा (पं० सं० ३३-३६), भावनगर से १९१४-२३ में
प्रकाशित; वहीं से ५ भागों में गुजराती अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है। .. जिनरत्नकोश, पृ० २८३, डा० आ० ने० उपाध्ये द्वारा सम्पादित, सिंधी
जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क १७, इसकी १२२ पृष्ठ में अंग्रेजी में लिखी
भूमिका महत्त्वपूर्ण है। ४. सहस्रदिशैर्बद्धो नूनं पंचशतान्वितैः (१२५००), प्रशस्ति, पद्य १६.
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