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कथा-साहित्य
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महाकाव्य, अन्योक्तिमुक्तामहोदधि, कीर्तिकल्लोलिनी, स्तुतित्रिदशतरंगिणी, सूक्तरत्नावली, कस्तूरीप्रकर, ऋषभशतक, विजय प्रशस्तिमहाकाव्य आदि अनेक हैं । इसकी सूचना विजयप्रशस्तिमहाकाव्य की प्रशस्ति में दी गई है ।
३. कथारत्नाकर - यह 'धर्मकथारत्नाकरोद्धार" या " कथारत्नाकरोद्धार' नाम से भी कहा जाता है । इसमें दो अध्याय हैं । इसका ग्रंथाग्र ५५०० श्लोकप्रमाण है । इसमें साधु-निन्दा का परिणाम दिखाने के लिए रुक्मिणी की कथा सम्मिलित है । इसके रचयिता उत्तमर्षि हैं । उत्तमर्षि के विषय में कुछ नहीं मालूम है ।
एक अज्ञात लेखककृत कथारत्नाकर का भी उल्लेख मिलता है ।
कथानककोश - इसमें १४० प्राकृत गाथाएँ हैं जिनपर संस्कृत में विनयचन्द्र की टीका है । इस ग्रंथ का नाम धम्मक्खाणयकोस भी है । पाटन भण्डार में इसकी हस्तलिखित प्रति है जिसमें वि० सं० ११६६ रचना या लिपि का समय दिया गया है । ३
पाटन के भण्डार में 'कथाग्रंथ' नामक कथाकोश की ताड़पत्रीय प्रति है जिसे महत्त्वपूर्ण बतलाया जाता है।" दूसरे ताड़पत्रीय कथाकोश 'कथानुक्रमणिका का भी उल्लेख मिलता है जिसका समय सं० ११६६ है । '
कथासंग्रह — इसे अन्तरकथासंग्रह या विनोदकथासंग्रह भी कहते हैं । यह सरल संस्कृत गद्य में लिखा गया कथाग्रंथ है । इसमें लगभग ८६ कथाएँ धार्मिक और नैतिक शिक्षा की हैं और शेष १४ वाक्चातुरी और परिहास द्वारा मनोरंजन की हैं। इनकी शैली बिल्कुल बातचीत की है । शब्दविन्यासप्रणाली देशज शब्दों से बहुत-कुछ रंगी हुई है । संस्कृत, महाराष्ट्री और अपभ्रंश पद्य इसमें प्रचुर रूप से उद्धृत हैं। अनेक कथाएँ तो सिद्धान्तों की गाथा कहकर ही कही गई हैं। ऐसी गाथाओं में किसी व्रत का माहात्म्य दिया गया है और उसे दृष्टान्तकथा
१. जिनरत्नकोश, पृ० ६६.
२. पाटन की हस्तलिखित प्रतियों की सूची, भाग १ ( गायकवाड़ भो० सिरीज सं० ७६ ), पृ० ४२; जिनरत्नकोश, पृ० ६५.
३. जिनरत्नकोश, पृ० ६५, ३६८.
४. वही, पृ० ६५.
५.
वही.
६. वही, पृ० ११ और ३५७.
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