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कथा-साहित्य
२९५ उक्त प्राकृत रचना के आधार से खरतरगच्छ के जयकीर्तिसूरि ने भी सं० १८६८ में ग्रन्याय ११०० प्रमाण श्रीपालचरित्र' संस्कृत गद्य में रचा है । इस पर एक अज्ञातकर्तृक टीका भी है।
अन्य श्रीपालचरितों के रचयिताओं के नाम हैं : जीवराजगणि, सोमचन्द्रगणि ( संस्कृत गद्य), विजयसिंहसूरि, वीरभद्रसूरि (ग्रन्थान १३३४ ), प्रद्युम्नसूरि (प्राकृत रचना), सौभाग्यसूरि, हर्षसूरि, क्षेमलक, इन्द्रदेवरस, विनयविजय (प्राकृत) तथा लब्धिमुनि।।
इनमें विनयविनय की प्राकृत रचना ४ खण्डों में विभक्त है। इसकी प्राचीन प्रति सं० १६८३ की मिलती है। लब्धिमुनि की १० सर्गों में १०४० श्लोकप्रमाण रचना है जो सं० १९९० में रची गई है। लब्धिमुनि खरतरगच्छ के राजमुनि के शिष्य हैं और इन्होंने खरतरगच्छ के आचार्यों के कई जीवनचरित लिखे हैं।
उपर्युक्त रचनाओं में श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित श्रीपाल का चरित दिया गया है।
दिगम्बर सम्प्रदाय सम्मत चरित्र पर सर्वप्राचीन ग्रन्थ श्रीपालचरित भट्टारक सकलकीर्तिकृत मिलता है जो सात परिच्छेदों में विभक्त है। इसमें कोटिभट श्रीपाल को राज्यावस्था में कुष्ठ होना, उसका निवारण, समुद्र-यात्रा, शूली पर चढ़ना आदि घटनाएँ नाटकीय ढंग से वर्णित हैं। इसके रचयिता का परिचय पहले दे चुके हैं पर ग्रन्थ की रचना का ठीक काल मालूम नहीं हो सका है। ___ अन्य लेखकों में विद्यानन्दि, मल्लिभूषण, श्रुतसागर, ब्रह्म नेमिदत्त (नौ सों में, सं० १५८५ ), शुभचन्द्र, पं० जगन्नाथ तथा सोमकीर्ति कृत रचनाओं का उल्लेख मिलता है। ___ दो अज्ञातकर्तृक श्रीपालचरितों का भी उल्लेख मिलता है उनमें से एक की प्राचीन प्रति सं० १५७२ की है।"
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१. वही, हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९०८. २. वही, पृ० ३९७-९८. ३. वही, पृ० ३९८; जिनदत्तसूरि भण्डार, पायधुनी, बम्बई, सं० १९९१. ४. वही, पृ० ३९७-३९८; जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३७४, राजस्थान
के जैन सन्त : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ० १३, इनमें से एक का हिन्दी
अनुवाद जिनवाणी प्रचारक कार्यालय, कलकत्ता से प्रकाशित हुभा है। ५. वही.
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