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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास शुक्लपञ्चमीकथा ( अपरनाम ज्ञानपंचमीकथा, सौभाग्यपंचमीकथा, वरदत्तगुणमंजरीकथा-सं० १६५५), सुरप्रियमुनिकथा ( सं० १६५६ ), रोहिण्यशोकचन्द्रनृपकथा (सं० १६५७), अक्षयतृतीयाकथा (गद्य), दीपालिकाकल्प (प्राकृत ), रत्नाकरपंचविंशतिकाटीका और मृगसुन्दरीकथा (सं० १६६७)।
उपदेशप्रासाद-यह एक विशाल कथाकोश है। इसमें २४ स्तंभ हैं।' प्रत्येक स्तम्भ में १५-१५ व्याख्यान हैं, इस तरह सब मिलाकर ३६० व्याख्यान होते हैं । इस ग्रन्थ की प्रासाद संज्ञा की सिद्धि के लिए ३६१वां व्याख्यान कहा गया है। इसमें कुल मिलाकर दृष्टान्त कथाएँ ३४८ हैं तथा ९ पर्व कथाएँ दी गई हैं।
विषय की दृष्टि से प्रथम चार स्तम्भों में सम्यक्त्व के प्रकारों का वर्णन है, पांच से बारह तक स्तंभों में श्रावक के १२ व्रतों का वर्णन, १३वे में जिनपूजा, तीर्थयात्रा तथा नवकार जाप का महत्त्व दिखाया गया है, १४वे में तीर्थंकरों के पाँच कल्याणक, दीपोत्सव आदि का वर्णन, १५ से १७ तक में ज्ञानपंचमी आदि पर्यों का वर्णन है, १८वे में ज्ञानाचार, १९वें में तपाचार, २०वें में वीर्याचार, २१ से २३ तक ज्ञानसारग्रन्थ के ३२ अष्टक तथा फुटकर विषय और २४वे में अनेक विषयों का समावेश है। इन विषयों के विवेचन में दृष्टान्त रूप में जो कहानियाँ दी गई हैं उनसे यह विशाल कथाकोश बन गया है। इसमें अनेक पौराणिक, ऐतिहासिक, आचार्यसम्बंधी तथा जनप्रिय कथाएँ देखने को मिलती हैं । यह जैन श्रावकों के लिए बड़े महत्त्व का ग्रन्थ है।
इन कथाओं में से पर्वो से सम्बंधित कथाओं को 'पर्वकथासंग्रह" नाम से अलग प्रकाशित किया गया है जिसमें आषाढ़-चातुर्मासिक, दीपावली, कार्तिकप्रतिपदा, ज्ञानपञ्चमी, कार्तिकी पूर्णिमा, मौनैकादशी, रोहिणी-हुताशनी आदि पर्वो की कथाएं दी गई हैं।
१. प्रकाशित, २. दोनों प्रकाशित. ३. जैनधर्म प्रसारक सभा, ग्रन्थ सं० ३३-३६, भावनगर, १९१४-१९२३, वहीं
से ५ भागों में गुजराती अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है। ४. चारित्रस्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क ३४, अहमदाबाद, वि० सं० २००१७
'सौभाग्यपञ्चम्यादिपर्वकथासंग्रह' नाम से हिन्दी जैनागम प्रकाशक सुमति कार्यालय, कोटा से वि० सं० २००६ में प्रकाशित.
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