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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
कालकाचार्य के कथानक को लेकर ११वीं शताब्दी के बाद संस्कृत - प्राकृत में अनेकों रचनाएँ या तो स्वतन्त्र या किसी न किसी कथासंग्रह या चरित के अन्तर्गत की गई हैं । उन सबका संग्रह अपने आप में एक बड़ा साहित्य बन जाता है। इसलिए उसकी एक रूप-रेखा मात्र यहाँ प्रस्तुत की जाती है :
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१. कालकाचार्यकथा
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देवचन्द्रसूरि '
( सं० ११४६ ) मधारी हेमचन्द्र ( १२वीं शती )
अज्ञातकर्तृक बृहद्' रचना
महेन्द्रसूरि विनयचन्द्रसूरि "
देवेन्द्रसूर
रामभद्रसूरि
भावदेवसूर प्रभाचन्द्रसूरि
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प्राकृत
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प्राकृत
( सं० १२७४ से पूर्व ) संस्कृत
( सं० १२८६ )
( १३वीं शती )
( १३वीं शती )
( सं० १३१२ )
( सं० १३३४ )
१. मूलशुद्धिटीकान्तर्गता. २. पुष्पमालान्तर्गता.
३. १५४ गाथाएँ, ग्रन्थाय २११.
४. ५२ इलोक; लेखक पल्लिवालगच्छ के ४८वें पट्टधर.
७४ गाथाएँ; लेखक रविप्रभसूरि के शिष्य एवं पार्श्वनाथचरित और मल्लिनाथचरित आदि के कर्ता.
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संस्कृत
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उन बातों के आधार पर एकाधिक कालकार्य मानना सम्भवतः उचित नहीं । प्राचीन सामग्री के विश्लेषण से यह सिद्ध होता है कि सभी घटनाओं से सम्बद्ध एक ही कालक थे ( देखें - जैन संस्कृति संशोधन मण्डल, वाराणसी से प्रकाशित उनका उक्त ग्रन्थ ) ।
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६. ८४ श्लोक ; लेखक जगचन्द्रसूरि के शिष्य, अन्य श्राद्धदिनकृत्य सवृत्ति आदि अनेक रचनाएँ.
19. १२५ संस्कृत पद्य; लेखक की अन्य रचना प्रबुद्ध रौहिणेय नाटक.
८. ९९ गाथाएँ; चन्द्रकुल खण्डिलगच्छ के यशोभद्र लेखक के गुरु थे, अन्य रचना पार्श्वनाथचरित.
१५६ संस्कृत पद्य; लेखक की प्रसिद्ध कृति प्रभावकचरित के अन्तर्गत.
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