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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
वैसे तो एक इतिहास-लेखक भी निःसन्देह अपनी सामग्री विभिन्न स्रोतों से एकत्र करता है, परन्तु जिनमण्डन में गुण-दोषविवेचक योग्यता का अभाव है और उनके श्रम का फल उन सब त्रुटियों से भरा है जो अविश्वसनीय स्रोतों से एकत्र तथ्यों वाले संग्रह में होती हैं ।
इस काव्य में हेमचन्द्राचार्य के सम्बंध में कुछ कल्पित बातें कही गई हैं जैसे - पहली हेमचन्द्रसूरि के संगीत - ज्ञान की, दूसरी हेमचन्द्रसूरि के अजैन शास्त्रों के ठोस ज्ञान की, तीसरी हेमचन्द्रसूरि ने पशु - बलिदान के अनौचित्य को कैसे सिद्ध किया, चौथी हेमचन्द्र के प्रशंसकों को राजा की ओर से उपहार मिलता था ।
इसके कर्ता जिनमंडनगणि तपागच्छ के प्रभावक आचार्य सोमसुन्दर सूरि के शिष्य थे । उन्होंने प्रस्तुत कृति की रचना सं० १४९१-९२ में की थी । उनकी अन्य रचनाएँ हैं धर्मपरीक्षा एवं श्राद्धगुणसंग्रह - विवरण ( सं० १४९८ ) । वस्तुपाल - तेजपालचरित :
गुजरात के बघेल वंशीय नरेश वीरधवल के दो सहोदर मंत्रियों—वस्तुपाल एवं तेजपाल की कीर्ति - गाथाओं को लेकर उनके समकाल तथा पश्चात् काल में जितने काव्य, नाटक, प्रबंध और प्रशस्तियां लिखी गई हैं उतनी शायद ही भारत के किसी अन्य राजपुरुष के लिए लिखी गई हों । इनमें अनेक तो ऐतिहासिक महत्त्व की हैं और कुछ शास्त्रीय महाकाव्य के रूप में हैं । हम उनका विवेचन उन प्रसंगों में करेंगे। इनके धार्मिक कार्यों के वर्णन के लिए समकालिक आचार्य उदयप्रभ ने धर्माभ्युदयकाव्य अपरनाम संघपतिचरित निर्मित किया है । वह एक प्रकार से कथाकोश है अतः उसका परिचय कथाकोशों के प्रसंग में दे रहे हैं ।
इन दोनों मंत्री-भ्राताओं के चरित्र पर पश्चात् काल ( अर्थात् दो सौ वर्ष बाद) में एक स्वतंत्र रचना जिनहर्षगणिकृत वस्तुपालचरित ( सं० १४४१ ) मिलता है । इसमें वस्तुपाल - तेजपाल के सम्बंध की उपलब्ध पूर्व सामग्री का उपयोग किया गया है। इसकी विशेष चर्चा ऐतिहासिक काव्यों में करेंगे । विमलमंत्रिचरित :
इसमें गुजरात के चौलुक्य नरेश भीम ( प्रथम ) के नगरसेठ एवं प्रधान सेनापति विमलशाह पोरवाड ( वि० सं० ११वीं का पूर्वार्ध ) के धार्मिक कार्यों का वर्णन है ।
9. कुमारपालप्रबंध, पृ० ३७, ४०, ४९.
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