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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास फैली थी। वह खरतरगच्छ के युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के प्रभावना-कार्यों में बड़ा सहयोगी था।
उसके जीवन को लेकर संस्कृत में लगभग ५५० पद्यों का उक्त काव्य खरतर- . गच्छ की क्षेमशाखा के प्रमोदमाणिक्य के शिष्य जयसोम उपाध्याय ने सं० १६५० में विजयादशमी के दिन लाहौर में रचा है। यह एक समकालिक रचना है।
इस पर उन्हीं के शिष्य गुणविजय ने सं० १६५५ में संस्कृत व्याख्या लिखी और उसी वर्ष गुजराती में पद्यानुवाद किया ।
क्षेमसौभाग्यकाव्य : __इसे पुण्यप्रकाश भी कहते हैं। इसमें मंत्री क्षेमराज के पुण्य-कार्यों का वर्णन है। इसे तपागच्छ के आनन्दकुशल के शिष्य रत्नकुशल ने सं० १६५० में रचा था। इसे खीमसौभाग्याभ्युदय नाम से भी कहा जाता है।'
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१. जिनरत्नकोश, पृ० ७१; इसका सार श्री देसाई ने अपने जैन साहित्यनो
संक्षिप्त इतिहास में पृ० ५७१-५७५ पर दिया है। '२. जिनरस्नकोश, पृ० १००.
१. इसकी हस्तलिखित प्रति विजयधर्मसूरि ज्ञानमन्दिर, भागरा में उपलब्ध है।
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