________________
पौराणिक महाकान्य अन्थान ५०० है, वह संस्कृत में है पर उसके कर्ता का नाम अशात है । दूसरी भी संस्कृत में है और इसके कर्ता का नाम चारुकीर्ति है।
विजयचन्द्रचरित-इसमें १५ वे कामदेव विजयचन्द्र केवली का चरित्र वर्णित है। इसे हरिचन्द्रकथा भी कहते हैं क्योंकि इसमें विजयचन्द्र केवली ने अपने पुत्र हरिचन्द्र के लिए अष्टविध पूजा जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, दीप, धूप, नैवेद्य और फल का माहात्म्य आठ कथाओं द्वारा बतलाया है । इस ग्रन्थ के दो रूपान्तर मिलते हैं। लघु का ग्रन्थान १३०० है और वृहत् का ग्रन्थाग्र ४००० ( ११६३ गाथाएँ)। ये दोनों प्राकृत में लिखे गये हैं।
रचयिता और रचनाकाल-इसके रचयिता खरतरगच्छीय अभयदेवसूरि के शिष्य चन्द्रप्रभ महत्तर हैं। उन्होंने अपने शिष्य वीरदेव की प्रार्थना पर वि० सं० ११२७ में इसकी रचना की थी। ग्रन्थ के अन्त में दी गई निम्न प्रशस्ति से यह बात ज्ञात होती है : मुणिकमरुहंक (११२७) जुए काले सिरिविक्कमस्स वट्टन्ते रइयं फुडक्खरस्थं चंदप्पहमहयरेणेयं ।।
स्व० दलाल ने चन्द्रप्रभ महत्तर को अमृतदेवसूर (निवृत्तिवंश) का शिष्य माना है जो 'जैन विविध साहित्य शास्त्रमाला' में प्रकाशित प्रति से खण्डित होता है।
विजयचन्द्रकेवलिचरित्र पर जयसूरि और हेमरत्नसूरि एवं अज्ञात लेखक की रचनाओं का भी उल्लेख मिलता है पर उनका ग्रन्थ-परिमाण और रचनाकाल शात नहीं है।
श्रीचन्द्रकेवलिचरित-इसमें १६ वे कामदेव श्रीचन्द्र का चरित्र निबद्ध है। यह कथा आचाम्लवर्धनतप के माहात्म्य को प्रकट करने के लिए रची
1. जिनरत्नकोश, पृ० २८३. २. वहो. ३. जैनधर्म प्रसारक सभा, ग्रन्थ सं० १६, भावनगर, १९०६; केशवलाल
प्रेमचन्द्र कंसारा, खंभात, वि० सं० २००७, गुजराती भनुवाद-जै. प्र.
स० भावनगर, वि० सं० १९६२; जिनरत्नकोश, पृ० ३५४. ४. हीरालाल र० कापड़िया-पाइय भाषामो भने साहित्य, पृ० ११. ५. जिनरत्नकोश, पृ० ३५४. ६. कुंवरजी आणंदजी, भावनगर, वि० सं० १९९३.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org