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पौराणिक महाकाव्य सामान्य वर्ग में से अर्जुन मालाकार पर तथा चौरकर्मनिरत व्यक्तियों में विद्युचर', रोहिणेय और दृढ़प्रहारि पर चरितग्रन्थ मिलते हैं।
महासन्तों में गौतम गणधर और जम्बूस्वामी के अतिरिक्त अम्बड़ परिवाजक एवं गांगेय मुनि पर चरित्र उपलब्ध हैं। भक्त महिलाओं में चन्दना, मृगावती, जयन्ती, प्रभावती, श्रीमती ( आर्द्रकुमार की रानी), सुलसा एवं रेवती श्राविका आदि पर भी ग्रन्थ लिखे गये हैं।
यहाँ हम कुछ रचनाओं का संक्षिप्त परिचय देते हैं।
गौतमचरित-भग• महावीर के प्रथम गणधर गौतम पर कई काव्य लिखे गये हैं उनमें से प्रस्तुत काव्य में ५ सर्ग हैं। इसकी रचना मंडलाचार्य धर्मचन्द्र (दिग०) ने की है। धर्मचन्द्र भट्टारक यश-कीर्ति के शिष्य, भानुकीर्ति के प्रशिष्य तथा श्रीभूषण भट्टारक के शिष्य थे। इस काव्य का काल सं० १७२६ है।'
दूसरी रचना भट्टाकर यशःकीर्तिकृत का भी निर्देश मिलता है। तीसरी रचना का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
गौतमीयकाव्य-यह काव्य ११ सर्गों में विभक्त है। प्रारम्भ में श्रोताओं के मनोरंजन के लिए उपवनशोभा, षड्ऋतु-वर्णन, समवसरण की शोभा आदि का वर्णन है। इस काव्य-ग्रन्ध में गौतम इन्द्रभूति के संशय का निवारण करने के लिए और उन्हें चारित्र में प्रवेश करने के लिए भगवान् महावीर उपदेश देते हैं। उपदेश में जैनधर्म के गूढ़ से गूढ़ तथ्य आ गये हैं, जैसे तर्कों द्वारा आत्मसिद्धि आदि । इन्द्रभूति के बाद अग्निभूति, व्यक्ताचार्य, सुधर्मा, मण्डित, मेतार्य प्रभृति के सन्देहों का निराकरण तथा जैनधर्म में दीक्षा का वर्णन है । इस प्रकार इस काव्य में प्रारम्भिक जैनसंघ का एक छोटा-सा इतिहास उपस्थित किया गया है। कवि ने बड़े कौशल से क्लिष्ट एवं नीरस विषय का भी हृदयाकर्षक ढंग से काव्यशैली में वर्णन किया है ।
1. जिनरत्नकोश, पृ० ३५६. २. वही, पृ० ३३४. ३. वही, पृ. ११७. ४. वही, पृ० १११. ५. वही. ६. वही, पृ० ११२, देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फण्ड सिरीज
(सं० ९०), १९४०, व्याख्यासहित,
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