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पौराणिक महाकाग्य
२०३. चरित पर भी ग्रन्थ लिखे हैं। अनेक मुनियों के नामों का संकलन 'निर्वाणकाण्ड' आदि नित्यपाठ किये जानेवाले स्तोत्रों के रूप में मिलता है पर उनके जीवन पर कुछ महत्वपूर्ण काव्य भी लिखे गये है। __एतद्विषयक भद्रेश्वरसूरिकृत कहावलि में 'थेरावलीचरिय' भाग उल्लेखनीय है। इसमें सर्वप्रथम युगप्रधान आचार्यों के सम्पूर्ण इतिहास की सामग्री का संग्रह किया गया है। इसमें कालकाचार्य से लेकर हरिभद्रसूरि तक के आचार्यों के चरित्र दिये गये हैं। यह एतद्विषयक अन्य रचनाओं-परिशिष्ट पर्व आदि का आदर्श रही है।
स्थविरावलीचरित अथवा परिशिष्टपर्व-यह हेमचन्द्राचार्य के त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र के १० पर्यों के परिशिष्ट रूप में रचा गया होने से परिशिष्टपर्व कहलाता है।
त्रिषष्टिशलाकापुंसां दशपूर्वीविनिर्मिता ।
इदानीं तु परिशिष्टपर्वास्माभिर्वितन्यते । इसमें जम्बूस्वामी से लेकर वज्रस्वामिपर्यन्त प्रभावक आचार्यों का विस्मयकारक चरित्र ग्रथित है।' जर्मन विद्वान् हर्मन याकोबी इसे स्थविरावलिचरित नाम से कहते हैं जो दो आधारों से है । पहला उक्त ग्रन्थ के पहले सर्ग का ६ठाँ श्लोक है : 'अत्र च जम्बूस्वाम्यादिस्थविराणां कथोच्यते' । दूसरा प्रत्येक पर्व के अन्त में आई पुष्पिकाओं में 'स्थविरावलीचरित महाकाव्य' नामोल्लेख मिलता है : इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचिते परिशिष्टपर्वणि स्थविरावलीचरिते महाकाव्ये........"
इस ग्रन्थ में १३ पर्व हैं जिनका परिमाण ३५०० श्लोक-प्रमाण है। _ इस ग्रन्थ का उद्देश्य धर्मोपदेश है जिसे हेमचन्द्र ने प्राचीन दृष्टान्त, उपदेशपूर्ण कथाएँ और पूर्ववर्ती युगप्रधान पुरुषों के कथानक देकर रोचक एवं रम्य बना दिया है। इसमें संग्रह रूप में अनेक पौराणिक कथाएँ, नीतिकथाएँ तथा प्राचीन स्थविरों के जीवन-वृत्तान्त मिल जाते हैं। धर्म के परम्परागत विस्तार में
१. याकोबी, स्थविरावलीचरित अथवा परिशिष्टपर्व, बिब्लियोथेका इण्डिका (सं.
९६), कलकत्ता १८९१; द्वितीय परिवर्धित संस्करण जिसे ल्यूमान और टावने ने सम्पादित किया, १९३२; पं० हरगोविन्द दास द्वारा सम्पादित, जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर, सं० १९६८; इसके अनेक उद्धरणों का अनुवाद जे० हर्टल ने जर्मन में किया था, लीपजिग, १९०८.
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