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पौराणिक महाकाव्य
१४१ को कैसे-कैसे लोगों से मिलने का अवसर मिला, कैसे-कैसे अनुभव उसको हुए यह सब बसुदेवहिण्डी में है।
समस्त ग्रन्थ सौ लम्भकों में पूर्ण हुआ है जो विशाल दो खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड में २९ लम्भक हैं और उसका परिमाण ११ हजार श्लोक-प्रमाण है। इस खण्ड के कर्ता संघदासगणि वाचक हैं। दूसरे खण्ड में ७१ लम्भक हैं जो १७ हजार श्लोक-प्रमाण हैं और इसके कर्ता धर्मदासगणि हैं। वास्तव में देखा जाय तो धर्मदासगणि ने अपने ७१ लम्भकों के सन्दर्भ को प्रथम खण्ड के १८ वें लम्भक की कथा प्रियङगुसुन्दरी के साथ जोड़ा है या एक तरह से वहाँ से कथा का विस्तार किया है और इस प्रकार से संघदास की वसुदेवहिण्डी (प्रथम खण्ड) के पेट में अपने अंश को भरने का यत्न किया है। भाव यह है कि संघदासगणि का २९ लम्भकोंवाला ग्रन्थ स्वतंत्र तथा अपने में परिपूर्ण था। पीछे धर्मदासगणि ने अपने ग्रन्थ को निर्मित कर उक्त ग्रन्थ के मध्यम अंश (१८ वें लम्भक) से जोड़ दिया है। __ कथा का विभाजन छः प्रकरणों में किया गया है-कहुप्पत्ति (कथोत्पत्ति ), पीढिया ( पीठिका ), मुह (मुख), पडिमुह (प्रतिमुख), सरीर (शरीर) और उवसंहार ( उपसंहार)। प्रथम कथोत्पत्ति में जम्बूस्वामिचरित, कुबेरदत्तचरित, महेश्वरदत्त-आख्यान, वल्कलचीरि-प्रसन्नचन्द्रआख्यान, ब्राह्मणदारककथा, अणाढियदेवोत्पत्ति आदि का वर्णन कर अन्त में वसुदेवचरित्र की उत्पत्ति बताई गई है।
प्रथम प्रकरण के अनन्तर ५० पृष्ठों का एक महत्त्वपूर्ण प्रकरण धम्मिल्लहिण्डी नाम से आता है। इसमें धम्मिल्ल नामक किसी सार्थवाह पुत्र की कथा दी गई है जो देश-देशान्तरों में भ्रमण कर ३२ कन्याओं से विवाह करता है। इस प्रकरण का वातावरण सार्थवाहों की दुनियाँ से व्याप्त है। इसी प्रकरण में शीलवती, धनश्री, विमलसेना, ग्रामीण गाड़ीवान, वसुदत्ताख्यान, रिपुदमन नरपति-आख्यान तथा कृतघ्न वायस आदि सुन्दर लौकिक आख्यान और कथाएँ मिलती हैं। भारत की प्राचीन संस्कृति जानने के लिए धम्मिल्लहिंडी प्रकरण का बड़ा महत्त्व है।
उक्त प्रकरण के बाद द्वितीय प्रकरण पीठिका आती है, जिसमें प्रद्युम्न और शम्बुकुमार की कथा, बलराम-कृष्ण की पट्टरानियों का परिचय, प्रद्युम्नकुमार का जन्म और उसका अपहरण आदि प्रद्युम्नचरित दिया गया है।
तृतीय प्रकरण-मुख में कृष्ण के पुत्र शम्ब और भानु की क्रीड़ाओं का वर्णन है । यह अनेकविध सुभाषितों से भरा हुआ है।
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