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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्रद्युम्न ने सहायता की थी। प्रद्युम्न के पूर्व प्रभाचन्द्र (प्रभावक चरित्रकार ) ने इसका संशोधन किया था।
धन्यशालिभद्रचरित-इसके रचयिता रुद्रपल्ली यगच्छ के देवगुप्त के शिष्य भद्रगुप्त हैं।' रचनाकाल सं० १४२८ दिया गया है।
धन्यशालिचरित-इसका दूसरा नाम धन्यनिदर्शन भी है। इसकी रचना दयावर्धनसूरि ने सं० १४६३ में की है। उनके गुरु का नाम जयपाण्डु या जयचन्द्र या जयतिलक है। ग्रन्थकार की अन्य महत्वपूर्ण कृति 'रत्नशेखररत्नवतीकथा' (सं० १४६३ ) है जो जायसी के हिन्दी महाकाव्य पद्मावत का स्रोत माना गया है। ग्रन्थकार के विषय में और कुछ नहीं मालूम है।
धन्यकुमारचरित-इसमें सात सर्ग हैं। भाषा सरल एवं सुन्दर है । ग्रन्थान ८५० श्लोक-प्रमाण है। इसके रचयिता भट्टारक सकलकीर्ति हैं जिनका परिचय पहले दिया गया है।'
धन्यशालिचरित-इसका दूसरा नाम 'दानकल्पद्रुम' भी है। यह एक संस्कृत-पद्यबद्ध रचना है। इसके कर्ता तपागच्छीय सोमसुन्दर के शिष्य जिनकीर्ति हैं जिन्होंने इसकी रचना सं० १४९७ में की थी। इनकी अन्य कृतियां नमस्कारस्तव स्वोपज्ञवृत्ति के साथ (वि० सं० १४९४), श्रीपालगोपालकथा, चम्पकश्रेष्ठिकथा, पंचजिनस्तव तथा श्राद्धगुणसंग्रह (वि० सं० १४९८ ) हैं।
१. धन्यकुमारचरित-इसमें पांच सर्ग हैं और ११४० श्लोक हैं। इसकी रचना खरतरगच्छीय जिनशेखर के प्रशिष्य और जिनधर्मसूरि के शिष्य जयानन्द ने सं० १५१० में की थी।
१. जिनरत्नकोश, पृ० १८८. २. वही, पृ० १८७-१८८; जैन आत्मानन्द सभा (० ४३), भावनगर, १९७१. ३. वही, पृ० १८७, राजस्थान के जैन सन्त : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ० ११%
हिन्दी अनुवाद-जैन भारती, बनारस, १९११. ४. पृ० ५१. ५. जिनरत्नकोश. पृ० १७२, १८७, देवचन्द्र लालभाई ग्रन्थमाला, सं० ९,
बम्बई, १९१९. -६, वही, पृ० १८७; जिनदत्तसूरि पुस्तकोद्धार फण्ड, सूरत, १९३८.
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