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पौराणिक महाकाव्य
१८१ ऋषभदेव के प्रथम गणधर' पुण्डरीक के चरित्र को लेकर भी एक जैन कवि ने पुण्डरीकचरित्र प्रस्तुत किया है जिसका परिचय इस प्रकार है
पुण्डरीकचरित-यह महाकाव्य आठ सर्गों में विभक्त है जिसमें २८३० पद्य हैं। उनका परिमाण ३३०० श्लोक-प्रमाण है। पौराणिक महाकाव्य होने से इसमें अनेक अलौकिक एवं अप्राकृत तत्त्वों का समावेश हुआ है। साथ ही स्तोत्रों और माहात्म्यों का भी वर्णन हुआ है। शत्रुजयमाहात्म्य का वर्णन अनेक स्थलों पर किया गया है। इसमें अवान्तर कथाओं में अन्यभवों का वर्णन देकर कर्मफल और जैनधर्म के महत्व को दिखाया गया है।
इस काव्य के नायक का कथानक वास्तव में तृतीय सर्ग से प्रारंभ होता है। प्रथम दो सर्गों में ऋषभदेव एवं भरत-बाहुबलि का वर्णन है। पहले इसमें आठ सर्ग होने की बात कही गई है किन्तु आठ सर्गों के बाद भी १०० पद्यों से ग्रन्थ की समाप्ति की गई है। वस्तुतः यह काव्य का नौवां सर्ग माना जाना चाहिए पर कवि ने कहीं भी इसे नवाँ सर्ग नहीं कहा है। काव्य के नायक को मोक्षपदप्राप्ति अष्टम सर्ग के मध्य में ही दिखाई गई है जहाँ कि कथा की समाप्ति समझी जानी चाहिए किन्तु कवि ने आगे कुछ बदाकर ऋषभदेव और भरत चक्रवर्ती के निर्वाण को दिखाने के लिए कथा-क्रम जारी रखा है। इस काव्य के नाम से ज्ञात होता है कि पुण्डरीक ही इसका नायक है। इसलिए इसमें उसके व्यक्तित्व को सर्वाधिक प्रभावशील होना चाहिए पर उसका व्यक्तित्व इस काव्य में ऋषभदेव और भरत के आगे कुछ दबा हुआ शधिगत होता है और वह केवल उपदेशक के रूप में ही दिखाई पड़ता है। इस तरह काव्य के नायकत्व रूप में ऋषभदेव, भरत और पुण्डरीक ये तीन पात्र सम्मुख आते हैं।
पुण्डरीकचरित की भाषा सरल और सरस है। इसमें अवसर के अनुकूल ओज, प्रसाद और माधुर्य गुणों से युक्त भाषा का प्रयोग किया गया है। सामान्य रूप से भाषा में प्रसादगुण की अधिकता है किन्तु युद्ध आदि के प्रसंगों में वह ओजप्रधान हो गई है। इस चरित की भाषा में यमक और अनुप्रास का आग्रह बहुत प्रबल है जिससे भाषा में गति, प्रवाह और झंकृति के गुण आ गये हैं। पुण्डरीकचरित में यत्र-तत्र गद्य का प्रयोग भी किया गया है। प्राकृत के
१. श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार. २. शारदा विजय जैन ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित; जिनरत्नकोश, पृ० २५१. ३. पुण्डरीकचरित, सर्ग 1, श्लोक ७५-७६; सर्ग ५, श्लो० १९५, ३३० मादि.
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