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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास का विद्वान् मान सकते हैं। हुम्मच के कन्नड-संस्कृत लेख के रचयिता वर्धमान ने भी धर्मभूषण के गुरु के रूप में उक्त वर्धमान की स्तुति की है।
शानभूषण भट्टारककृत एक अन्य वरांगचरित का भी उल्लेख मिलता है। महावीरकालीन श्रेणिक-परिवार के चरित्र :
भग० महावीर का समकालीन राजगृहनरेश श्रेणिक जैन धर्मानुयायी था। मैनागमों में उसका कई स्थलों पर वर्णन है । यहाँ उसका विशेष परिचय देने की आवश्यकता नहीं है। जैन चरित्र काव्यों में उस पर कई रचनाएँ मिलती है१ भेणिकचरित्र (भाद्धदिनकृत्यवृत्ति) देवेन्द्रसूरि (सं० १३३७ के पूर्व) २ श्रेणिकद्वथाश्रयकाव्य
जिनप्रम (वि० सं० १३५६) ३ श्रेणिकपुराण या चरित्र
भट्टारक शुभचन्द्र (वि० सं० १६१२) ४ श्रेणिकराजकथा (गद्य)
धर्मवर्धन या धर्मसिंह (वि० सं०
१७३६ के लगभग) ५ श्रेणिकपुराण
बाहुबलि ६.७ श्रेणिकचरित्र
अज्ञात श्रेणिकचरित-इसमें ७२९ अनुष्टुप् पद्य हैं।' बीच-बीच में प्राकृत पद्य भी हैं। यह श्राद्धदिनकृत्यवृत्ति से अलगकर प्रकाशित किया गया है। वहाँ यह प्रभावना के महत्त्व को सूचित करने के लिए प्रस्तुत किया गया है। इसमें संक्षेप में श्रेणिक, उसकी रानियों, पुत्रों तथा जीवन की अनेक धार्मिक घटनाओं का वर्णन है। यह एक धार्मिक काव्य है। इसमें श्रेणिक नरेश के राजनैतिक जीवन का कोई चित्रण नहीं है। ___रचयिता एवं रचनाकाल-इसके रचयिता जगच्चन्द्रसूरि के शिष्य देवेन्द्रसूरि हैं। इनका स्वर्गवास वि० सं० १३२७ में हुआ था। इनकी अन्य रचनाएँ-पाँच नन्यकर्मग्रन्थ सटीक, भाष्यत्रय, श्राद्धदिनकृत्यवृत्ति, धर्मरत्नटीका, सिद्धपंचासिका और सुदर्शनाचरित्र मिलती हैं।
1. जैन शिलालेख संग्रह, भाग २, पृ० ५२०. २. जिनरत्नकोश, पृ. ३४१. ३. वही, पृ० ३९९. ... ऋषभदेव केशरीमल श्वे. जैन संस्था, रतलाम, सं० १९९४.
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