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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
होने पर वह चेल्लना के विचित्र दोहद को अपनी चातुरी से शान्त करता है । इसी तरह श्रेणिक की दूसरी रानी धारिणी के अकालवर्ष दोहद को वह अपनी चातुरी से पूर्ण करता है । चतुर्थ सर्ग में उसके अनेक विस्मयकारी कार्यों का वर्णन है । पाँचवे से सातवें सर्ग में श्रेणिक और उसकी रानियों से संबंधित कथाएँ हैं । एक कथा में चेल्लना का हार खोने पर अभयकुमार अपनी चातुरी से उसे खोज निकालता है । इसी तरह आठवें से दसवें सर्गों में अनेक कथाओं का वर्णन है जो किसी न किसी प्रकार से अभयकुमार के चातुर्य प्रदर्शन से सम्बद्ध की गई हैं । ग्यारहवें सर्ग में महावीर स्वामी के राजगृह आगमन पर अभयकुमार दीक्षा ग्रहण करने की अभिलाषा व्यक्त करता है और बारहवें में दीक्षित हो तपस्याकर सर्वार्थसिद्धि विमान में उत्पन्न होता है ।
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इस काव्य की कथा बड़ी रोचक है । इस काव्य में के चित्रण में काव्यकार को पर्याप्त सफलता मिली है । प्रकृति का स्वाभाविक रूप में चित्रण ओर भी कवि ने पर्याप्त ध्यान दिया है । है, सहज सौन्दर्य के रूप में नहीं ।
• अभयकुमारचरित्र में अपने समय के समाज का, उसमें व्याप्त धारणाओं, रीति-रिवाजों, अन्धविश्वासों और मान्यताओं का यथार्थ चित्रण हुआ है । इस काव्य में सामाजिक अध्ययन की जितनी सामग्री मिलती है उतनी इस युग के अन्य काव्यों में नहीं मिलती ।
भाषा की दृष्टि से भी यह काव्य महत्त्वपूर्ण है । अन्य काव्यों की अपेक्षा इसकी भाषा बहुत ही व्यावहारिक और मुहावरेदार है । इसमें सरलता और सरसता सर्वत्र व्याप्त है । समस्त पदावली का प्रयोग बहुत ही कम किया गया है । कहीं-कहीं अनुकूल शब्दों के चयन से सुन्दर चित्र प्रस्तुत किये गये हैं। इस काव्य
प्रकृति के विविध रूपों
अनेक स्थलों पर उसने किया है । पात्रों के सौन्दर्य-चित्रण की पर वह परम्परागत उपमानों में वर्णित
१. वही, सर्ग, १.३७८-२८२; २.७८ ३.२०४-२०५, २४२-२४३; ६.५९६२; ८.५.
२.
वही, सर्ग, १.१६७, २०१; २.२.
३. वही, सर्ग, १.३०६-३३४, ३९२-४१०, ४९६-४७१; २.१०१-१५६; ३.१७४ - १७७, १८३ - १८५; ४.१०८, १६८, २५८; ५.२२९-२३०, ५६९५७१; ९.४०-४७, ५०, ५१, ५६, ५८, ४३७, ६६०-६६८; ११. २६२, ९०३ - ९०४, ९२१-९२२.
४. वही, सर्ग, १०.५७-५९.
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