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पौराणिक महाकाव्य
अंजनासुन्दरीचरित - हनुमान की माता अंजनासुन्दरी पर अंजनासुन्दरीचरित नामक, खरतरगच्छीय जिनचन्द्रसूरि की शिष्या गुणसमृद्धि महत्तराकृत, ५०३ प्राकृत गाथाओं का काव्य ( सं० १४०६ ), जिनहंस के शिष्य पुण्यसागरगणिकृत ( ३०३ संस्कृत श्लोकों में ) काव्य, खरतरगच्छीय रत्नमूर्ति के शिष्य मेरुसुन्दरोपाध्यायकृत ( १६ वीं शता० ) तथा ब्रह्म निनदासकृत काव्य' मिलते हैं ।
कृष्ण
राजीमती-रुक्मिणी- सुभद्रा द्रौपदीचरित -- भगवान् नेमिनाथ और कालीन अनेक धर्मपरायणा महिलाओं के चरित्र भी जैन कवियों ने निबद्ध किये हैं ! यथा— नेमिनाथ की भावी पत्नी राजीमती पर आशाधरकृत राजीमतीविप्रलंभ ( खण्डकाव्य ) तथा यशश्चन्द्र का रानीमतीप्रबोधनाटक े; कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी पर रुक्मिणीचरित ( जिनसमुद्र, १८वीं शती), रुक्मिणीकथानक ( छत्रसेन आचार्य ); कृष्ण की बहिन सुभद्रा पर सुभद्राचरित्र ( ग्रन्थाग्र १५०० ) तथा पाण्डवपत्नी द्रौपदी पर द्रौपदीसंहरण ( समयसुन्दर, १७वीं शती), द्रौपदीहरणाख्यान ' ( पण्डित लालजी) तथा अज्ञातकर्तृक द्रौपदीचरित नामक काव्य मिलते हैं ।
वरांगचरित्र - बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ और श्रीकृष्ण के समकालीन नृप एवं पुण्यपुरुष वरांग की कथावस्तु जैन कवियों को काव्य के माध्यम से गृहीधर्म-अणुव्रत तथा अध्यात्मधर्म को समझाने में बहुत प्रिय रही है। वरांग के चरित में धर्मार्थकाममोक्ष चतुर्वंग समन्वित धर्मकथा के दर्शन काव्यरचयिताओं ने किये और पाठकों को कराये हैं। अबतक वरांगचरित नाम से संस्कृत में तीन, कन्नड में एक तथा हिन्दी में दो काव्य उपलब्ध हुए हैं। केवल संस्कृत रचनाओं का ही यहाँ परिचय प्रस्तुत किया जाता है
१. वरांगचरित – जैन चरित काव्यों में संस्कृत का महत्त्वपूर्ण सर्वप्रथम चरित काव्य जटासिंहनन्दि का वरांगचरित है । यद्यपि इसके पूर्व रविषेण का 'पद्मचरित' उपलब्ध है पर वह अधिकांश में 'पउमचरिय' की छाया रूप सिद्ध
१. जिनरत्नकोश, पृ० ४.
२. वही, पृ० ३३०.
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३. वही, पृ० ३३२. ४. वही, पृ० ४४५.
५.
वही, पृ० १८३.
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