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पौराणिक महाकाव्य
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यशःकीर्ति और मल्लिभूषण के धन्यकुमारचरित्र का उल्लेख भर मिलता है । इसी तरह विल्हण विकृत धन्यकुमारचरित्र का भी । '
२. धन्यकुमारचरित – इसमें पाँच सर्ग हैं। इसकी रचना भट्टा० विद्यानन्दि एवं मल्लिभूषण के शिष्य ब्रह्म नेमिदत्त ने की थी । ब्र० नेमिदत्त का साहित्यकाल सं० १५१८ - २८ माना जाता है ।
शालिभद्रचरित - इसकी रचना विनयसागरगणि ने सं० १६२३ में की थी । इस रचना एवं रचयिता के सम्बन्ध में और विशेष कुछ नहीं ज्ञात हो सका है प्रभाचन्द्रकृत शालिभद्रचरित का भी उल्लेख मिलता है ।
प्राकृत में भी कुछ शालिभद्रचरित्रों का पता लगा है। एक में १७७ गाथाएँ हैं। प्रारम्भ 'सुरवरकयमाणं नट्टनीसेसमानं' से होता है । अन्यों का उल्लेख
मात्र है । "
धन्यविलास — इसका ग्रंथाग्र ११०० श्लोक - प्रमाण है । यह संस्कृत-कृति है ! इसकी रचना धर्मसिंहसूरि ने की थी । इसकी एक हस्तलिखित प्रति मिली है ।
धन्यचरित - यह 'संस्कृताभासजल्पमय' विशाल गद्यरचना है । इसका ग्रंथाग्र ९००० श्लोक- प्रमाण है । यह ९ पल्लवों में विभक्त है ।" इसमें धन्यकुमार, शालिभद्र दोनों का चरित्र है ।
इस ग्रंथ का आधार जिनकीर्ति की कृति उपर्युक्त 'दानकल्पद्रुम' अपरनाम धन्यशालिचरित्र है ।" ग्रंथ के बीच में अनेक अवान्तर कथाएँ हैं । यह ग्रंथ अनेक
१. जिनरत्नकोश, पृ० १८७. २. वही.
३. वही, पृ० ३८२.
४. वही.
4.
वही, पृ० १८७.
६. वही; पोपटलाल प्रभुदास, सिहोर द्वारा वि० सं० १९९६ में प्रकाशित.
७.
इति श्री जिनकीर्तिविरचितस्य पद्यबद्ध श्रीधन्यचरित्र शालिनः महोपाध्यायश्रीज्ञानसागरगणिशिष्याल्पमतिग्रथितगद्यरचना प्रबंधे इत्येवं
गद्यबन्धेन
मया धन्यमुनेः शालिभद्रमुनेः चरितं संस्कृताभासजल्पमयं लिखितं ।
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