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पौराणिक महाकाव्य
१६३ बाद मुकुट के प्रभाव से वह उज्जयिनी के राजा चण्डप्रद्योत को हराकर बन्दी बनाता है पर अपनी पुत्री के उस राजा पर प्रेमासक्त होने से उससे विवाह कर उसे राज्य लौटा देता है। एकबार काष्ठ के खंभे को लोगों ने इन्द्रध्वज बनाकर बहुमूल्य वस्त्राभूषणों से पूजा और पीछे उत्सव समाप्त होने पर पृथ्वी पर गिरा दिया जिसे बालकजन विटमूत्र से लिप्त घसीटकर ले जाने लगे। यह देख द्विमुख को वैराग्य हो गया और उसने दीक्षा धारण कर ली। .. ३. सुदर्शनपुर का नृप मणिरथ अपने अनुज युगबाहु की पत्नी मदनरेखा पर आसक्त हो जाता है और उसे पाने के लिए अपने अनुज को मार डालता है। गर्भावस्था में ही मदनरेखा भाग निकलती है और रंभागृह में एक बालक को जन्म देती है। सरोवर में वस्त्र-प्रक्षालन को जाते समय उसका अपहरण हो जाता है। रंभागृह से उसके बालक को मिथिलानरेश पद्मरथ ने लाकर पालापोसा और उसका नाम नमि रखा और युवक होने पर उसे राज्य देकर प्रव्रज्या धारण कर ली।
एक दिन नमि की देह में भयंकर दाह होने लगी। रानियाँ उसके लिए चन्दन घिसने लगी पर उनकी चूड़ियों की ध्वनि से ही उसे बड़ी पीड़ा होती थी। इससे रानियों ने एक चूड़ी को छोड़ शेष को उतार दिया, इससे ध्वनि होनी बन्द हो गई। तब नमि ने यह सोचा कि संग ही सबसे बड़ा दुःख देनेवाला है, ये चूड़ियाँ अन्य चूड़ियों के साथ आवाज करती थीं पर अकेले रहने पर शान्त हो गई हैं अतः शान्ति के लिए एकाकी जीवन ही सर्वश्रेष्ठ है। इस तरह वह विरक्त हो गया और दीक्षा ले ली।
४. गांधार देश का राजा सिंहरथ एक समय वन में जाने पर एक सुन्दरी कन्या से विवाह करता है और उससे अपनी जीवन-कथा सुनाने का आग्रह करता है। वह अपने पूर्व की कथा सुनाकर कहती है-मैं पूर्व में कनकमंजरी नाम के चित्रकार की पुत्री थी और आपके पूर्वभव के जीव राजा जितशत्रु से विवाह हुआ था। मृत्यु के बाद स्वर्ग से आकर राजा दृढ़रथ की पुत्री कनकमाला हुई हूँ और आप सिंहरथ हुए हैं। एक देवता के आदेश पर यहाँ बैठे आज आपको पति के रूप में प्राप्त किया है। नृप सिंहरथ पत्नी की आज्ञा लेकर घर आता है और प्रायः हर दूसरे-तीसरे दिन प्रिया कनकमाला की याद करके नग पर जाता रहता है अतः प्रजा उसका नाम नग्गति रखती है। एक दिन वह ससैन्य उपवन में जाता है। वहां वह आम्रवृक्ष की एक मंजरी तोड़ता है। सभी सैनिक भी एक-एक मंजरी तोड़ते हैं। जिससे वह पेड़ लकड़ी मात्र
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