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१४.
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास बलिराजचरित-इसमें १९वें कामदेव का चरित्र वर्णित है । इसे बलिनरेन्द्रकथानक या बलिनरेंद्राख्यान भी कहते हैं । इसका अपर नाम भुवनभानुकेवलिचरित्र भी है। इस पर अनेकों कवियों की रचनाएँ मिलती हैं। संस्कृत में एतद्विषयक मलधारी हेमचन्द्र तथा हरिभद्रसूरिकृत काव्यों का उल्लेख मिलता है। अन्य लेखकों में विजयसिंहसूरि के शिष्य उदयविजय तथा मलधारीगच्छ के विजयचन्द्रसूरि की रचनाओं का भी निर्देश मिलता है। इन सबका रचनाकाल अज्ञात है। बलिनरेन्द्रकथानक नामक संस्कृत गद्य में उपलब्ध काव्य के रचयिता तपागच्छीय धर्महंसगणि के शिष्य इन्द्रहंसगणि हैं जिसे उन्होंने संवत् १५५४ में रचा था। इन्हीं इन्द्रहंसगणि ने सं० १५५७ में इस चरित्र को पाकृत भाषा में निबद्ध किया था। यही चरित्र' हीरकलशगणि ने सं० १५७२ में रचा है । दो अन्य रचनाएँ अज्ञातकर्तृक भी मिलती हैं।
वसुदेवचरित-कृष्ण के पिता वसुदेव जैन मान्यतानुसार २० वें कामदेव थे । उनका चरित जैन साहित्य में बड़े रोचक और व्यापक रूप से वर्णित है। इस संबंध में सर्वप्रथम ज्ञात रचना भद्रबाहुकृत वसुदेवचरित्र है जो अब तक अनुपलब्ध है। इसका उल्लेख देवचन्द्रसूरि तथा माणिक्यचन्द्रसूरि के शान्तिनाथचरित्र में किया गया है। __ वसुदेवहिण्डी-इसका अर्थ वसुदेव की यात्राएँ है। वसुदेवहिंडी में वसुदेव के घर छोड़ कर बाहर घूमने की कथाएँ दी गई हैं। अपनी यात्राओं में वसुदेव
१. जिनरत्नकोश, पृ० २८२ और २९८. २. वही, पृ० २९८. ३. हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९१९. ४. जिनरत्नकोश, पृ० २९८. ५. वही.
पाटन ग्रन्थ सूचीपत्र, भाग १ ( गायकवाड़ मोरियण्टल सिरीज सं० ७६),
पृ० २०४; जिनरत्नकोश, पृ० ३४४. ७. सम्पादक-मुनि पुण्यविजय जी, आत्मानन्द जैन ग्रन्थमाला, भावनगर,
१९३१; गुजराती अनुवाद-डा. भोगीलाल ज. सांडेसरा, मात्मानन्द जैन ग्रन्थमाला, भावनगर, वि० सं० २००३, जिनरत्नकोश, पृ० ३४४; इस ग्रन्थ का अभी तक केवल प्रथम खण्ड ही प्रकाश में आया है। इसमें भी १९-२० वें लम्भक अनुपलब्ध हैं तथा २८वां अपूर्ण है।
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