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___ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास जर्मन विद्वान् आल्सडोर्फ ने वसुदेवहिण्डी की तुलना गुणाढ्य की पैशाची भाषा में लिखी बृहत्कथा से की है। संघदासगणि की इस कृति को वे बृहत्कथा का रूपान्तर मानते हैं। बृहत्कथा' में नरवाहनदत्त की कथा दी गई है और इसमें वसुदेव का चरित । गुणाढ्य की उक्त रचना की भाँति इसमें भी शृंगारकथा की मुख्यता है पर अन्तर यह है कि जैनकथा होने से इसमें बीच-बीच में धर्मोपदेश विखरे पड़े हैं। वसुदेवहिण्डी में एक ओर सदाचारी श्रमण, सार्थवाह एवं व्यवहारपटु व्यक्तियों के चरित अंकित है तो दूसरी ओर कपटी तपस्वी, ब्राह्मण, कुटनी, व्यभिचारिणी स्त्रियों और हृदयहीन वेश्याओं के। कथानकों की शैली सरस एवं सरल है।
वसुदेवहिण्डीसार-यह २८ हजार श्लोक-प्रमाण विशाल कथाग्रन्थ वसुदेवहिण्डी का संक्षिप्त सार है जो २५० श्लोक-प्रमाण प्राकृत गद्य में लिखा गया है। इस वसुदेवहिण्डीसार के कर्ता कौन हैं, उन्होंने क्यों और किसलिए सारोद्धार किया है ? यह निश्चित नहीं हो सका। केवल ग्रन्थ के अन्त में लिखा है कि 'इइ संखेपेण सिरिगुणनिहाणसूरीणं कए कहा कहिया' अर्थात् श्रीगुणनिधानसूरि के लिए संक्षेप में कथा कही गई है । पर किसने कही है यह ज्ञात न हो सका। इस प्रति में इसका स्पष्ट या अस्पष्ट उल्लेख भी नहीं है। इसके सम्पादक पं० वीरचन्द्र के अनुसार यह ग्रन्थ तीन-चार सौ वर्ष से अधिक प्राचीन नहीं है। इसे 'वसुदेवहिण्डीआलापक' भी कहा जाता है पर ग्रन्थान्त में 'वसुदेवहिण्डी कहा समत्ता' लिखा है इससे इसका 'वसुदेवहिण्डीसार' नाम ठीक है। __प्रद्युम्नचरित्र-बीसवें कामदेव वसुदेव के पौत्र तथा नवम नारायण श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न जैनधर्मसम्मत इक्कीसवें कामदेव (अतिशय रूपवान् ) थे। प्रद्युम्न का चरित जैन कवियों को इतना रुचिकर था कि उन्होंने उसे साधारण पुराणों में पर्याप्त स्थान देने के अतिरिक्त स्वतन्त्र काव्यों के रूप में भी रचा है।
.. बृहत्कथा का संस्कृत रूपान्तर सोमदेवकृत कथासरित्सागर मिलता है
जिसमें नरवाहनदत्त के साथ विवाहित होनेवाली कन्यामों के नाम से लम्भकों
के नाम दिये गये हैं। २. हेमचन्द्राचार्य ग्रंथावली (सं० ४), पाटन, सन् १९१७. ३. वसुदेवहिण्डी, जिनसेन के हरिवंशपुराण (४७-४८ सर्ग), हेमचन्द्र के
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, गुणभद्र के उत्तरपुराण में प्रद्युम्नचरित दिया गया है।
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