________________
पौराणिक महाकाव्य
३. जीवन्धरचम्पू ४. जीवन्धरचरित
(चम्पूकाव्य) महाकवि हरिचन्द्र
मास्कर कवि सुचन्द्राचार्य
:؟
ब्रह्मय्य
शुभचन्द्र (सं० १६०३) . जीवन्धर की कथा का सार-राजपुर का राजा सत्यं घर विषयासक्त होकर राज्य:संचालन से विमुख हो राज्यभार अपने मन्त्री काष्ठाङ्गार को दे देता है। अपनी रानी के प्रसवकाल में राजा विश्वासघाती मन्त्री द्वारा षड्यन्त्रपूर्वक मारा जाता है। पट्टरानी विजया तथा अन्य दो रानियों ने तथा राजा के चार अन्य विश्वासी मित्रों की पत्नियों ने गुप्त रूप से जन्मे पुत्र को एक वणिक के घर पाला। रानी विजया के पुत्र का नाम जीवन्धर पड़ा। वह बचपन से ही होनहार और चमत्कारी था। उसने आगे चलकर अपनी असाधारण बुद्धि और शौर्य का परिचय दिया। उसने एक साधु को अपने हाथ से भोजन जिमाकर उसका भस्मक रोग दूर किया । यौवन प्राप्त करते ही उसने एक के बाद एक ८ सुन्दरी कन्याओं को विवाहा । प्रत्येक के विवाह-प्रसंग में उसने अपनी विभिन्न कलाओं का प्रदर्शनकर लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया था। वह जादू की अंगूठी के सहारे वेश भी बदल सकता था। अन्तिम विवाह के प्रसंग में उसने अपना वास्तविक परिचय अन्य राजाओं को दिया और उनकी मदद से विश्वासघाती मन्त्री का वधकर राज्य प्राप्त कर सका। एक समय बगीचे में उसने बन्दरों के झुंड को क्रोध में लड़ते देखा। इससे उसे संसार से घृणा हो गई और वह भग० महावीर के समोसरण में दीक्षित हो गया और तपस्याकर मोक्षपद पाया ।'
क्षत्रचूडामणि-जीवन्धर को क्षत्र या क्षत्रियों में चूडामणि -तुल्य मानकर इस काव्य का नाम क्षत्रचूडामणि' रखा गया है। इसका दूसरा नाम बीवन्धरचरित भी है।
१. विण्टरनित्स, हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, भाग २, पृ० ५००-५०३. २. राजतां राजराजोऽयं राजराजो महोदयः,
तेजसा वयसा शूरः क्षत्रचूडामणिर्गुणैः । ३. सम्पादक टी० ए० कुप्पुस्वामी, संजोर, १९०३, हिन्दी अनुवाद, दिगम्बर
जैन पुस्तकालय सूरत; जिनरत्नकोश, पृ० ९७.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org