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पौराणिक महाकाव्य
५. दामनन्दि
६. वीरसेन के शिष्य श्रीधरसेन
७. वादिराज
८. अज्ञातकर्तृक
८ सर्ग
१४९
समय-अज्ञात
समय-अज्ञात, स्थान गोनर्द
समय अज्ञात
कथा का सार - कनकपुर के राजा जयंधर और रानी पृथ्वी से नागकुमार
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द्वारा रक्षा किये जाने के कारण ही वह अनेक विद्याएँ सीखकर उसने विवाह किया था । रखता था । नागकुमार सफल हो गया तो श्रीधर
का जन्म हुआ था । बाल्यकाल में नागों के उसका नागकुमार नाम पड़ा था । नागदेश से युवा हुआ था और वहाँ की सुन्दर किन्नरियों से नागकुमार का सौतेला भाई श्रीधर जब नगर के एक मदोन्मत्त हाथी को वश करने में
उससे ईर्षाद्वेष
और भी कुपित हो गया ।
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नागकुमार अपने पिता के आग्रहवश कुछ समय के लिए विदेश भ्रमण के लिए चला गया । सर्वप्रथम वह मथुरा पहुँचा और वहाँ के राजा की कन्या को बन्दीगृह से निकालकर कश्मीर पहुँचा जहाँ पर वीणा वादन में त्रिभुवनति को पराजित करके उसके साथ विवाह किया । रम्यक वन में कालगुफावासी भीमासुर से उसका साक्षात्कार हुआ । कांचनगुफा में पहुँचकर उसने अनेक विद्याएँ एवं अपार सम्पत्ति प्राप्त की। इसके बाद गिरिशिखरवासी राजा वनराज से उसकी भेंट हुई और उसकी पुत्री लक्ष्मी से उसका विवाह हुआ । नागकुमार वहाँ से गिरनार पर्वत की ओर गया । वहाँ उसने सिन्ध के राजा चण्डप्रद्योत से गिरिनगर के राजा - अपने मामा की रक्षा की और उसके बदले उसकी पुत्री से विवाह किया । इसके पश्चात् उसने अबंध नगर के अत्याचारी राजा सुकंठ का वध किया और उसकी पुत्री रुक्मिणी से विवाह किया । अन्त में उसने पिहितासव मुनि से अपनी प्रिया लक्ष्मीमली के पूर्व भव की कथा एवं श्रुतपंचमी के उपवास का फल सुना। इधर उसके सौतेले भाई श्रीधर ने दीक्षा ले ली तब उसके पिता ने उसे बुलाकर राज्याभिषेक कर दीक्षा धारण कर ली। नागकुमार ने राज्यसुख भोगकर अन्त में साधु जीवन ग्रहण किया और मोक्ष पद
पाया ।
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जिसमें ५०७ पद्य हैं ।
नागकुमारकाव्य – यह पाँच सर्गों का लघुकाव्य' है इसमें श्रुतपंचमी या श्रीपंचमी के माहात्म्य को सूचन करने के लिए २० वें कामदेव का चरित्र वर्णित है । इसे श्रुतपंचमीकथा भी कहते हैं । इसके
१. जिनरत्नकोश, पृ० २०९, पं० नाथूराम प्रेमी - जैन साहित्य और इतिहास ( द्वि० सं० ), पृ० ३१५.
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