________________
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नेमिनाथ-महाकाव्य :
काव्यात्मक दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण कृति है। इसमें १२ सर्ग हैं, जिनमें ७०३ पद्य हैं। सर्गों के निर्माण में विभिन्न छन्दों का प्रयोग किया गया है। १, ४, ७
और ९ में अनुष्टुप् छन्द, ५-६ में उपेन्द्रवज्रा, ३ में इन्द्रवज्रा, ८ में द्रुतविलंबित, ११ में वियोगिनी तथा २, १० और १२ में और प्रत्येक सर्ग के अन्त में विविध छन्दों का प्रयोग किया गया है। भाषा माधुर्य एवं प्रसादगुण युक्त है। १२वें सर्ग के अन्त में शब्दालंकार की छटा द्रष्टव्य है। इसमें पूर्वभवों का वर्णन एकदम छोड़ दिया गया है। प्रथम सर्ग में च्यवनकल्याणक, दूसरे में प्रभात, तीसरे में जन्मकल्याणक, चौथे में दिक्कुमारियों का आगमन, पाँचवे में मेरुवर्णन, छठे में जन्माभिषेक, सातवे में जन्मोत्सव, आठवें में षड्ऋतुओं, नववे में कन्यालाभ, टशवे में दीक्षा वर्णन, ग्यारहवें में मोहसंयमयुद्धवर्णन तथा बारहवे में जनार्दन का आगमन और उनके द्वारा स्तुति तथा नेमिनाथ का मोक्षवर्णन दिया गया है । इस लघु काव्य को प्रभातवर्णन, मेरुवर्णन, षडऋतुवर्णन आदि द्वारा महाकाव्योचित लक्षणों से भूषित करने के कारण महाकाव्य की संज्ञा भी दी गई है।
कर्ता और रचनाकाल-काव्यकर्ता का नाम की र्तिराज उपाध्याय है जैसा कि १२वें सर्ग के अन्तिम पद्य से सूचित होता है। यद्यपि उक्त पद्य में कवि ने इस काव्य को 'काव्याभ्यासनिमित्तम्' लिखा है पर उनके इस प्रौढ़काव्य से ऐसा नहीं लगता है। इस काव्य के पढ़ने से लगता है कि कवि व्याकरण, छन्द, अलंकार एवं शब्द-प्रयोग में विशारद था। कवि कहाँ और किस काल में हुए हैं और किस आचार्य-परम्परा के थे यह उक्त ग्रन्थ से पता नहीं लगता। काव्य की एक हस्तलिखित प्रति में एक ओर लिखा है कि "सं० १४९५ वर्षे श्री योगिनीपुरे (दिल्ली) लिखितमिदम्' । सम्भवतः यही या इससे पूर्व कवि का समय हो । एक अनुमान है कि कवि खरतरगच्छ के थे। नेमिनाथचरित:
यह चरित्र संस्कृत गद्य के १३ विभागों में निर्मित है । ग्रन्थ ५२८५ श्लोकप्रमाण है।
१. जिनरत्नकोश, पृ० २१७, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला (सं० ३८), भा व
नगर, वी० सं० २४४०. २. देवचन्द्र लालभाई पुस्तकोद्वार फंड, सूरत, १९२०; गुजराती अनुवाद-जैन
आत्मानन्द सभा, भावनगर, वि० सं० १९८०; जिनरत्नकोश, पृ० २१७.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org