________________
पौराणिक महाकाव्य
११५
इक्कीसवें तीर्थकर नमिनाथ पर एक चरित-काव्य का उल्लेख मात्र मिलता है।
बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ पर अनेकों काव्यात्मक रचनाएँ पाई जाती हैं। इनमें प्रथम रचना सूराचार्यकृत नेमिनाथचरित है। यह द्विसंधानात्मक है और प्रथम तीर्थंकर ऋषभ पर भी इसका अर्थ घटित होता है। इसका वर्णन बहुर्थक काव्यों में किया जायगा। ऐसी ही द्वितीय रचना अजितदेव के शिष्य हेमचन्द्रसरि की है जिसका नाम नेमिद्विसंधान है। इसका भी वर्णन बहुर्थक काव्यों में किया जायगा। सोम के पुत्र वाग्भट ( १२ वीं शती) का नेमिनिर्वाणकाव्य १५ सर्गों में विभक्त है जो शास्त्रीय महाकाव्य की शैली का है। उसका उक्त प्रसंग में वर्णन किया जायगा। सामान्यकोटि की कुछ काव्यात्मक रचनाओं का संक्षिप्त वर्णन यहाँ प्रस्तुत किया जाता है।
तिलकमंजरीसारोद्धार के रचयिता (लघु) धनपाल (सं० १२६१) के पिता कवि रामन ने नेमिचरित्र महाकाव्य लिखा था। तिलकमंजरीसारोद्धार में उस काव्य को सुश्लिष्ट शब्दों से पूर्ण, अद्भुत अर्थ और रसों से तरंगित महाकाव्य कहा है। कवि रामन अणहिल्लपुर निवासी पल्लीवालकुलीन तथा अशेष शास्त्रों के ज्ञाता थे। वि० सं० १२८७ में कवि दामोदर ने सल्लखणपुर (मालवा) में परमारवंशी राजा देवपाल के राज्यकाल में एक नेमिनाथचरित्र की रचना की । कवि के पिता का नाम कवि माल्हण और ज्येष्ठ भ्राता का नाम जिनदेव था। इन्हीं दामोदर कवि का एक काव्य चन्द्रप्रभचरित्र भी मिलता है । सन् १२९९ के लगभग नागेन्द्रगच्छ के विजयसेनसूरि के शिष्य उदयप्रभ ने भी २१०० ग्रन्थानप्रमाण नेमिनाथचरित की रचना की। इन्हीं उदयप्रभ ने सं० १२९९ में उपदेशमाला पर भी टीका लिखी थी।
वि० चौदहवीं शताब्दी के लगभग सांगण के पुत्र विक्रम ने नेमिचरितकाव्य" रचा जो कि मेघदूत के पादों को लेकर लिखा गया था। इसका वर्णन समस्यापूर्तिकाव्य के प्रसंग में करेंगे।
१. वही, पृ० ३०२. २. तिलकमंजरीसारोद्धार, प्रशस्ति, पद्य १-२. ३. धारा और उसके जैन सारस्वत, गुरु गोपालदास बरैया स्मृति-ग्रंथ, पृ० ५४३. ४. जिनरस्नकोश, पृ० २१७. ५. वही, पृ० २१७; जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३५९-३६१.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org