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पौराणिक महाकाव्य
उनकी पट्टपरम्परा में क्रमशः देवसूरि, भद्रेश्वरसूरि, अभयदेवसूरि, मदनचन्द्ररि हुए। प्रस्तुत ग्रन्थकार मुनिदेवसूरि मदनचन्द्रसूरि के शिष्य थे। उन्होंने प्रस्तुत कृति की रचना सं० १३२२ में की। इस काव्य के संशोधक श्री प्रद्युम्नसूरि थे। प्रस्तुत शान्तिनाथचरित का आधार हेमचन्द्राचार्य के गुरुदेवचन्द्रसूरि कृत प्राकृत में निबद्ध बृहद् शान्तिनाथचरित है । सम्भवतः इसीलिए मुनिदेवसूरि ने प्रत्येक सर्ग के अन्त में देवचन्द्रसूरि की स्तुति की है। ___मुनिदेवसूरि के उक्त चरित्र को आधार बनाकर शास्त्रीय महाकाक्ष्य की शैली पर १९ सर्गात्मक शान्तिनाथचरित की रचना बृहद्गच्छोय मुनिभद्रसूरि ने सं० १९१० में की थी जिसका विवरण शास्त्रीय महाकाव्यों के प्रसंग में प्रस्तुत किया जायेगा। ४. शान्तिनाथचरित: ___ इसमें १६ वे तीर्थंकर शान्तिनाथ का चरित्र वर्णित है। वे तीर्थंकर के साथ चक्रवर्ती और कामदेव भी थे। उनकी इन सभी विशेषताओं का इस काव्य में वर्णन है। काब्य में १६ अधिकार हैं तथा ग्रन्थान ४३७५ श्लोक-प्रमाण है। इसकी भाषा आलंकारिक तथा वर्णन रोचक एवं प्रभावक है। प्रारम्भ में शृंगार रस के स्थान में शान्त रस की ओर प्रवृत्ति पर कवि ने अच्छा प्रकाश डाला है। ५. शान्तिनाथचरित :
इसे सरल संस्कृत गद्य में सं० १५३५ में भावचन्द्रसूरि ने रचा है। ये पूर्णिमागच्छ के पार्श्वचन्द्र के प्रशिष्य एवं जयचन्द्र के शिष्य थे । ग्रन्थ का
१. वही, प्रशस्ति, श्लोक ११. २. वही, सर्ग १, श्लोक १७ :
श्रीप्रद्युम्नश्चिरं नन्द्यात् ग्रन्थस्यास्य विशुद्धिकृत् । ३. वही, सर्ग १, श्लो० ३५७. ४. दुलीचन्द्र पन्नालाल देवरी, १९२३, हिन्दी अनुवाद सहित-जिनवाणी
प्र० का०, कलकत्ता, १९३९. इसका अनुवाद सूरत से पं० लालाराम शास्त्री-कृत भी उपलब्ध है। जिनरत्नकांश, पृ० ३७९; जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ: ५१६; जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर, १९११; हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९२४; शांतिसूरि जैन० ग्र०, अहमदाबाद, सं० १९९५; गुजराती अनुवाद, भावनगर, सं० १९७८.
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