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होटल पर बहुत स्वादिष्ट या जायकेदार वस्तुएँ मिलती हैं। आहार-संज्ञा के उद्दीपन के कारण ही वहाँ लोगों की भीड़ उमड़ने लगती है।
4. आहार का चिन्तन करने से -
आहार का निरन्तर चिन्तन करते रहने से भी आहार-संज्ञा की उत्पत्ति होती है। किसी व्यक्ति ने किसी शादी, पार्टी या समारोह में पेट भर स्वादिष्ट भोजन किया उसे जब तक उस भोजन की स्मृति रहती है, तब तक उसे वैसा ही भोजन करने की तीव्र इच्छा बनी रहती है।
इस प्रकार, स्थानांगसूत्र में आहार-संज्ञा की उत्पत्ति के चार कारण तो प्रमुख हैं ही, साथ ही आहार-संज्ञा की उत्पत्ति के निम्न कारण भी होते है -
1. जब किसी खाद्यपदार्थ की मीठी और भीनी गंध आती है तो उस खाद्य पदार्थ को खाने की लालसा जाग्रत हो जाती है।
2. किसी विशेष खाद्यपदार्थ को कोई व्यक्ति खाता हैं, तो उसे देखकर मुंह में पानी आ जाता है और उसे खाने की इच्छा जाग्रत हो जाती है।
3. चलचित्र आदि में भोजन-संबंधी दृश्यों को देखकर जठराग्नि प्रदीप्त हो जाती है।
4. ठंड, गर्मी और वर्षा के मौसम में भी कुछ गरम या ठंडा पीने या खाने की इच्छा भी आहार-संज्ञा के कारण ही उत्पन्न होती है।
इस प्रकार, आहार-संज्ञा के उद्भव के देश, काल, परिस्थितियों के अनुसार अन्य कारण भी हो सकते हैं।
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