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3. निग्रंथ श्रमण स्त्रियों के साथ की हुई पूर्वरति या पूर्वक्रीड़ा का स्मरण न करे।
4. अतिमात्रा में आहार-पानी का सेवन या सरस स्निग्ध भोजन का उपयोग नहीं करना चाहिए।
5. निग्रंथ मुनि को स्त्री, पशु या नपुंसक से युक्त शय्या या आसनादि का सेवन नहीं करना चाहिए।
समवायांगसूत्र में वर्णित पाँच भावनाएँ इस प्रकार हैं -
1. स्त्री-पुरुष नपुंसक संसक्त शय्या और आसन का वर्जन करे। 2. स्त्रीकथा विवर्जन करे। 3. स्त्रियों की इन्द्रियों का अवलोकन न करे। 4. पूर्वक्रीड़ित क्रीड़ाओं का स्मरण न करे। 5. प्रणीत (स्निग्ध-सरस) आहार नहीं करे।
प्रश्नव्याकरणसूत्र के अनुसार -
1. विविक्तशयनासन। 2. स्त्रीकथा का परित्याग। 3. स्त्रियों के रुपादि को देखने का परिवर्जन। 4. पूर्वकाल में भुक्तभोगों के स्मरण से विरति। 5. सरस बलवर्द्धक आदि आहार का त्याग ।
आचारांगचूर्णि के अनुसार -
1. निग्रंथ प्रणीत भोजन तथा अतिमात्रा में आहार न करे। 2. निग्रंथ शरीर की विभूषा करने वाला न हो। 3. निग्रंथ स्त्रियों के मनोहर और मनोरम अंगों को नहीं देखे। 4. निग्रंथ स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त शय्या और आसन का सेवन न
करे। 5. स्त्रियों की (कामभोगजनक) कथा न करे।
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