________________
345
कार्य सिद्ध कर सकता है।"57 अगले अध्याय में मान पर विजय किस प्रकार से प्राप्त की जाए -इस बात की विस्तृत व्याख्या करेंगे।
मान पर विजय के उपाय
फल-फूलों से लदा हुआ पेड़ जैसे सहज ही झुक जाता है, वैसे ही गुणों के भार से आत्मा विनम्र होती है, झुक जाती है, पर अहंकार इंसान की एक बहुत बड़ी कमजोरी है, इसी अहंकार के पोषण में इंसान सब कुछ समर्पित करने को तैयार हो जाता है। सत्ता, सम्पदा और शक्ति को पाकर भले ही हम अहंकार करने लगे, पर इसका स्थायित्व नहीं है। भारतीय संस्कृति लघुता से प्रभुता पाने की संस्कृति है। दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि मान विनय का नाश करने वाला है, अतः मान पर विजय मृदुता से प्राप्त की जा सकती है। अनुदित मान का निरोध और उदय प्राप्त का विफलीकरण – यह मान-विजय है। मान-विजय से मान के कारण होने वाली हानियों से सहज ही बचा जा सकता है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है -"मानविजय से विनय गुण की प्राप्ति होती है, मान-वेदनीयकर्म नहीं बंधता है तथा पूर्व में बंधे हुए कर्मों की निर्जरा हो जाती है। 60
मान को जीतना एक दुष्कर कार्य है, फिर भी निम्न प्रकार से मान पर विजय प्राप्त कर सकते हैं :
1. शरीर की स्वस्थता, सुन्दरता का गर्व होने पर अशुचि भावना का चिन्तन करना चाहिए। शरीर क्या है ? अस्थि, मज्जा, रक्त, मल-मूत्र इत्यादि दुर्गन्धमय
57 सयणस्स जणस्स पिओ, णरो, अमाणी सदा हवदि लोए।
णाणं जसं च अत्थं, लभदि सकज्जं च साहेदि।। - भगवती आराधना, 1379 58 माणो विणयणासणो -दशवैकालिक 8/38
59 माणं मद्दवया जिणे -वही 8/39 60 माणं विजएणं मद्दवं जणयइ, माण वेयणिज्जं कम्मं न बंधइ,
पुव्वबद्धं च निज्जरेइ। - उत्तराध्ययनसूत्र 29/69
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org