Book Title: Jain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Pramuditashreeji
Publisher: Pramuditashreeji

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Page 576
________________ 540 जैन-संज्ञाएँ मैकड्यूगल की मूलप्रवृत्तियाँ 1. भोजन ढूंढना मूलप्रवृत्तियों से सम्बद्ध संवेग 1. भूख 1. आहारसंज्ञा 2. भयसंज्ञा 2. भागना 2. भय 3. मैथुनसंज्ञा 3. लड़ना/आक्रामकता 3. क्रोध 4. उत्सुकता 4. आश्चर्य 4. परिग्रहसंज्ञा 5. क्रोधसंज्ञा 5. रचना 5. रचनात्मक आनन्द 6. मानसंज्ञा 6. संग्रह 6. संग्रह-भाव 7. मायासंज्ञा 7. विकर्षण 7. घृणा 8. लोभसंज्ञा 8. शरणागत होना 8. करुणा 9. लोकसंज्ञा 9. यौनप्रवृत्ति . 9. कामुकता (Sexuality) 10. ओघसंज्ञा (मूलप्रवृत्तियों से 10. शिशुरक्षा 10. स्नेह अलग है 11. सुखसंज्ञा 11. दूसरों की अभिलाषा 11. एकाकीपन का भाव 12. दुःखसंज्ञा 12. आत्मप्रकाशन 12. उत्साह 13. धर्मसंज्ञा (मूलप्रवृत्तियों से 13. विनीतता 13. आत्महीनता अलग है) 14. मोहसंज्ञा 14. हंसना 14. प्रसन्नता 15. शोकसंज्ञा 16. विचिकित्सा (जुगुप्सासंज्ञा) जैनदर्शन में संज्ञाओं की जो अवधारणा है, वह पाश्चात्य-मनोविज्ञान के मैकड्यूगल के मूलप्रवृत्तियों के सिद्धांत से बहुत कुछ समानता रखती है। तुलनात्मक- दृष्टि से विचार करने पर जैनदर्शन में मूलभूत चार संज्ञाएंआहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा और परिग्रहसंज्ञा मानी गई हैं, उनकी समरूपता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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