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माया से ऋजुता-सरलता का विनाश होता है, इसका स्वभाव वक्रता एवं कुटिलता है। छाल वक्र होने से उसके आधार पर चार दृष्टांत किए गए हैं।
___ लोभ व्यक्ति से हिंसक, अधार्मिक क्रियाएं करवाता है। उन संक्लिष्ट अध्यवसायों के कारण आत्मा दूषित (रंजित) होती है, अतः लोभी व्यक्ति की मनःस्थिति को रंगों के द्वारा परिभाषित किया गया है।
इस प्रकार, संज्वलन, प्रत्याख्यानी, अप्रत्याख्यानी और अनन्तानुबंधी क्रोध-संज्ञा, मान-संज्ञा, माया-संज्ञा और लोभ-संज्ञा क्रमशः मन्द, तीव्र, तीव्रतर और तीव्रतम है।
लोभोत्पत्ति के कारण -
स्थानांगसूत्र में लोभोत्पत्ति के चार कारणों का उल्लेख मिलता है -
1. क्षेत्र के कारण, 2. वस्तु के कारण, 3. शरीर के कारण, 4. उपधि के कारण।
नारकों से लेकर वैमानिक-देवों तक के सभी जीवों में इन चार कारणों से लोभ की उत्पत्ति होती है।
1. क्षेत्र के कारण -
खेत, भूमि आदि को प्राप्त करने के लिए प्रयास करना। यह क्षेत्र, खेत और भूमि मेरी हो जाए और जब तक वह अपने अधिकार में नहीं होती, लोभ की प्रवृत्ति बढ़ती ही है। एक खेत का स्वामी बन जाने पर हृदय में दूसरे खेत खरीदने का लालच उत्पन्न हो जाता है। कहा गया है –“यदि किसी एक व्यक्ति को
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