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वाला लोभ ही पाप का मूल कारण है। लोभी मनुष्य धन को देखता है, किन्तु उससे उत्पन्न होने वाले दुःख को नहीं देखता है। बिल्ली दूध को देखती है, किन्तु लाठी के प्रहार को नहीं देखती। लौकिक-कथा में पाप का बाप लोभ को ही बताया
6. लोभ मुक्ति-मार्ग का बाधक है -
साधना-मार्ग में स्थिर होना हो, तो लोभ-कषाय का शमन कर ही मुक्ति-मार्ग में अग्रसर हो सकते हैं, परंतु लोभ की प्रवृत्ति के कारण व्यक्ति सम्पत्ति-अर्जन में ही लगा रहता है और उसका उपभोग भी नहीं कर पाता। स्थानांगसूत्र में कहा है - “इच्छा लोभि ते मुत्तिमग्गस्स पलिमंथू," अर्थात् लोभ मुक्ति-मार्ग का बाधक है। लोभी व्यक्ति मुक्ति-मार्ग की ओर अग्रसर नहीं हो सकता। मम्मण सेठ ने अति लोभ के फलस्वरूप नरक-आयु का बन्ध किया। 7. लोभ ईर्ष्या को बढ़ाता है - -
लोभ-प्रवृत्ति के कारण ईर्ष्या उत्पन्न होती है। व्यक्ति की यह मानसिक-प्रवृत्ति होती है कि वह दूसरों को बढ़ता देखता है, तो उसके मन में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है और उससे आगे बढ़ने के लिए वह प्रतिस्पर्धा प्रारंभ कर देता है। वह ईर्ष्यारूप प्रतिस्पर्धा, चाहे धनसंचय, विद्याध्ययन, कलात्मक व्यवसाय के क्षेत्र में हो, यदि उनके मूल में देखें, तो लोभ ही इन सबका संपादक है। 8. समाज में जुआ और भ्रष्टाचार का कारण लोभ -
बिना परिश्रम के विराट् सम्पत्ति प्राप्त करने की तीव्र इच्छा, लालसा जुआ है। यह लालसा भूत की तरह मानव के सत्त्व को चूस लेती है। जिसको यह लत लग जाती है, वह मृग-मरीचिका की तरह धन-प्राप्ति की अभिलाषा से अधिक-से
60 लोभ प्रतिष्ठा पापस्य, प्रसूतिर्लोभ एव च
द्वेष-क्रोधादिजनको, लोभः पापस्य कारणम्।। - भोजप्रबन्ध 61 स्थानांगसूत्र
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