________________
मोह के दुष्परिणाम
1. कर्मबंधन का प्रमुख कारण मोह
-
-
उन दोनों का कारण मोह बताया
जैन - परम्परा में बन्धन के मूलभूत तीन कारण राग, द्वेष और मोह माने गए हैं। उत्तराध्ययनसूत्र में राग और द्वेष – इन दोनों को कर्म - बीज कहा गया है 31 और गया है । यद्यपि राग और द्वेष साथ-साथ रहते हैं, फिर भी उनमें राग ही प्रमुख है । राग के कारण ही द्वेष होता है। वस्तुतः, राग मोह का ही रूप है। जैन - कथानकों के अनुसार, इन्द्रभूति गौतम का महावीर के प्रति प्रशस्त राग भी उनके कैवल्य की उपलब्धि में बाधक रहा था । इस प्रकार, मोहजन्य राग ही बन्धन का प्रमुख कारण है। आचार्य कुन्दकुन्द राग को प्रमुख कारण मानते हुए कहते हैं – रागयुक्त आत्मा ही कर्म - बन्ध करता है और राग से विमुक्त मुक्त हो जाता है - यही जिनेश्वर परमात्मा का उपदेश है, इसलिए आसक्ति या रागभाव मत रखो। 32 यदि राग का कारण जानना चाहें, तो जैन - परम्परा के अनुसार मोह ही इसका कारण सिद्ध होता है । यद्यपि मोह और राग-द्वेष सापेक्ष रूप में एक-दूसरे के कारण बनते हैं। इस प्रकार, द्वेष का कारण राग और राग का कारण मोह है। मोह तथा राग परस्पर एक-दूसरे के कारण हैं, अतः राग, द्वेष और मोह – ये तीनों ही जैन परम्परा में बन्धन के मूल कारण हैं ।
-
बौद्ध - परम्परा में भी लोभ (राग), द्वेष और मोह को बन्धन का कारण माना गया है | 33
31
इस सम्बन्ध में आचार्य नरेन्द्रदेव लिखते हैं - "लोभ और द्वेष का हेतु मोह है, किन्तु पर्याय से राग, द्वेष भी मोह के हेतु हैं । 34
34
494
1)
उत्तराध्ययनसूत्र, 32/7
2) जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, डॉ.सागरमलजैन, भा.1,पृ.361
32 समयसार, 157
33 अंगुत्तरनिकाय, 3/33, पृ. 137
'बौद्धधर्मदर्शन, पृ.25
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org