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6.
7.
शोक के कारण व्यक्ति वस्तु तत्त्व का सही ज्ञान नहीं कर सकता, इसलिए शोक मुक्ति में बाधक है। शोक के कारण व्यक्ति का चिंतन नकारात्मक हो जाता है। वह अपने-आपको असफल, अयोग्य और दोषभाव {guilt feeling} से युक्त मानता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में जब-जब असफल होता है, उसका पूर्ण दायित्व वह अपने ऊपर ले लेता है और अपने भविष्य को निराशा एवं उदासी से भरा समझता हैं, इस कारण, उसकी बौद्धिक क्षमता {intellectual ability} दिन-प्रतिदिन गिरती जाती है और संशय
Confusion] बढ़ता जाता है। वह घटनाओं को ठीक ढंग से याद नहीं रख पाता हैं। शोक के कारण वह छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान भी ठीक ढंग से नहीं कर पाता है।
शोक के कारण भूख कम लगती है तथा शारीरिक-वजन में कमी आती है, या इसके विपरीत भूख अधिक लगती है या शारीरिक वजन में वृद्धि होती
9. ऊर्जा की कमी तथा थकान का अनुभव होता है। 10. शोकग्रस्त व्यक्ति अपनी जिंदगी की क्रियाओं एवं दबावों से बचने के लिए
आत्महत्या {sucide} करने में भी नहीं हिचकिचाता। वस्तुतः, शोक एक मानसिक-विकार है, जिसे सकारात्मक विचारों के माध्यम से हटाया जा सकता है। अगले अध्याय में शोक पर विजय किस प्रकार से करे ? इस बात की चर्चा करेंगे।
शोक पर विजय कैसे ?
शोक का विपरीत शब्द उत्साह है, शोक तभी होता है, जहाँ उत्साह की कमी होती है। जहाँ उत्साह है, आत्मविश्वास है, दृढ़-निश्चय और पुरुषार्थ है, वहाँ शोक
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