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शोक के दुष्परिणाम निम्न हैं - 1. शोक के कारण उदासी {Sadness}, निराशा {hopelessness), दुःख
Funhappyness}, दोषभाव, बेकारी का भाव आदि प्रधान होते हैं। इनमें उदासी सबसे प्रधान लक्षण है। शोक के कारण व्यक्ति द्रवित हो जाता है, आँखों से आँसू बहना, छाती पीटना, दूसरे जीवों को रुलाना, शोकसंतप्त करना आदि क्रियाकलाप करता है और इन हेतुओं से शोक-मोहनीयकर्म का बंधन करता है। जब
यह कर्म उदय में आता है, तब जीव शोकसागर में डूब जाता है। 3. शोक के कारण चिंता {anixety} और तनाव {tention] अधिक बढ़ जाता
है, इस कारण उन्हें अपने शौक {hobby}, मनोरंजन तथा परिवार –सभी अर्थहीन लगते हैं, इनसे उन्हें किसी प्रकार का कोई आनन्द नहीं आता। मनोवैज्ञानिक तो यहाँ तक कहते हैं कि विषाद (शोक) के कारण प्रमुख जैविक-क्रियाएँ, जैसे - भोजन, एवं यौन सम्बन्ध भी इनके लिए कोई सार्थक सुख का साधन नहीं रह जाती है। शोक व्यक्ति के चित्त में नकारात्मक भावों का उद्दीपक बन जाता है। शोकावस्था में व्यक्ति इतना उदास हो जाता है कि वह अपने आपको
समाप्त करने के लिए भी तत्पर हो जाता है। 5. आचार्य महाप्रज्ञजी ने उदासी का एक कारण ग्रंथियों का रसायन-स्राव
संतुलित नहीं होना भी माना है। जेराटोनिन रसायन की कमी के कारण उदासी अकारण ही आ जाती है। यह मस्तिष्क का एक रसायन है। इसकी कमी या असंतुलन उदासी (शोक) का कारण बनता है।
7 आधुनिक असामान्य मनोविज्ञान, अरूणकुमार सिंह, पृ. 445 88 सोया मन जग जाए, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 100
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