Book Title: Jain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Pramuditashreeji
Publisher: Pramuditashreeji

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Page 548
________________ 514 का उल्लेख हुआ है। वस्तुतः, जब शोक व्याप्त होता है, तब भी यही लक्षण सामान्यतः देखने में आते हैं। 1. क्रन्दनता - उच्च स्वर से रोना। 2. शोचनता - दीनता प्रकट करते हुए शोक करना। 3. तेपनता - आँसू बहाना। . 4. परिदेवनता – करुणा-जनक विलाप करना। शोक के दुष्परिणाम - शोक एक मानसिक अवस्था है, मानसिक अवस्था दो प्रकार की होती है, एक -प्रसन्नता की और दूसरी –उदासी (शोक) की। एक खिला हुआ फूल है, तो दूसरा मुरझाया हुआ फूल। विकसित फूल सबको अच्छा लगता है और मुरझाया हुआ फूल अच्छा नहीं लगता, उसी प्रकार प्रसन्नता जहाँ व्यक्ति को सक्रिय करती है, वहीं उदासी उसे निष्क्रिय करती है। शोक की अवस्था में व्यक्ति का चित्त अस्तव्यस्त हो जाता है और उसके आसपास रहे व्यक्ति भी शोक के कारण प्रभावित हो जाते हैं, जैसे - कल्पसूत्र में भगवान् महावीर ने माता के गर्भ में रहते हुए यह विचार किया कि अन्य माताओं का गर्भ जब फिरता है, तब उसके पेट में पीड़ा होती है, इसलिए मैं हिलना-चलना बंद कर दूं, जिससे मेरी माता सुखी होगी। ऐसा निश्चय कर उदर के एक हिस्से में प्रभु निश्चलता से रह गए, तब त्रिशलादेवी को इस प्रकार का शोक व्याप्त हो गया। वह कहने लगी - "अहो! मेरा गर्भ किसी दुष्ट देव ने हर लिया है या गर्भ मर गया है- च्यव हो गया है, गल गया है, खिर गया अथवा स्थान-भ्रष्ट हो गया है। पहले मेरा गर्भ हिलता था, चलता था, अब चलता-फिरता नहीं है, मेरा गर्भ कुशल नहीं है।" त्रिशला देवी का मन खिन्न हो जाता। खेद हुआ, शोकसमुद्र में प्रवेश कर, मुँह नीचे 84 श्री कल्पसूत्र, श्री आनन्दसागरसूरिश्वरजी म.सा., गा.91, पृ. 160 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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