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24 यह क्षितिज के समान है, जो केवल 24 यह सत्, सत्तावान, अस्तित्ववाला है।
भासित होता है, परंतु प्राप्त कभी नहीं
होता है, अस्तित्वहीन होता है 25 यह पुण्यों का क्षय करने वाला है। 25 यह पापों का क्षय करने वाला है।
26 इससे व्यक्तित्व और समाज-राष्ट्र 26 इससे सुंदर व्यक्त्वि , समाज-राष्ट्र का दूषित होता है।
निर्माण व इसमें सुंदरता आती है।
वस्तुतः, आध्यात्मिक सुख और वैषयिक सुख का संक्षिप्त में विवेचन किया है। निश्चात्मक रूप से कह सकते हैं कि संसार में कोई भी सुख ऐसा नहीं है, जिसका कारण विषयसुख न हो। समस्त दुःखों का मूल कारण विषयसुख ही है। परन्तु आनंद आत्मिक सुख है एवं वास्तविक सुख है।
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