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प्राप्त कर लेता है, वह संसार में पुनः वापस नहीं आता, साथ ही वह शुभ और अशुभ से ऊपर उठा हुआ होता है और सदैव शाश्वत शांति का उपभोग करता है।
निर्वाण और मोक्ष –ये दोनों शब्द पर्यायार्थक हैं। निर्वाण का अर्थ है -क्लेशों और तृष्णा की समाप्ति। इसका संबंध अविनश्वर और सर्वोच्च स्वतंत्रता की प्राप्ति से भी है। मोनियर विलियम्स निर्वाण शब्द की व्याख्या करते हुए इसका अर्थ करते हैं - अन्तगत, शान्त, दृश्य, जीवन्मुक्त, पदार्थमुक्त, सर्वोच्च सत्ता से सम्बद्ध, समस्त इच्छाओं और विकारीभावों से मुक्त और परमानन्द प्राप्त ।136
___मोक्ष आध्यात्मिक-जीवन का अन्तिम सोपान है। मानव का धार्मिक और आध्यात्मिक-जीवन मोक्षमार्ग पर अग्रसर होकर ही प्रकाशमान होता है। आत्मा और परमात्मा का तादात्म्य ही मोक्ष व परमानन्द की चरम अनुभूति है। जीव ब्रह्म में लीन होकर मोक्ष-पद को प्राप्त करता है। आत्मा का यही सच्चा ज्ञान मोक्ष है।
धर्म और मोक्ष एक-दूसरे के साधन और साध्य के रूप में सम्पृक्त हैं। एक मार्ग है, दूसरा फल, एक उपाय है, दूसरा गंतव्य। गंतव्य अर्थात् मोक्ष वह प्रयोजन है, जिस तक केवल धर्मरूपी मार्ग द्वारा ही पहुंचा जा सकता है। मोक्ष केवल वे ही प्राप्त कर सकते हैं, जो धर्म–मार्ग पर चलते हैं। जैनदर्शन में मार्ग और मार्ग-फल इन दो अवधारणाओं में अन्तर किया गया है। धर्म मोक्ष का उपाय है और इसीलिए मोक्षमार्ग है। जो व्यक्ति सम्यक मार्ग पर चलता है, वही अन्ततः मोक्ष प्राप्त करता है। इस मार्ग (धर्म) के अनुसरण के फलस्वरूप ही निर्वाण संभव हो सकता है। 137 जैनदर्शन में समत्व को धर्म कहा गया है। जो धर्म है, वही समत्व है।138
136 Monier Miner-Williams, A Sanskrit English Dictionary, P.P.834 - 35 137 समणसुत्तं, पृ. 229 138 वही, पृ. 274-275
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