Book Title: Jain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Pramuditashreeji
Publisher: Pramuditashreeji

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Page 516
________________ 483 धर्म मोक्ष का साधन - भारतीय-चिंतन में धर्म सामाजिक-व्यवस्था और सामाजिक-शांति के लिए है, क्योंकि धर्म को 'धर्मो धारयति प्रजाः 133 के रूप में भी परिभाषित कर उसका संबंध हमारे सामाजिक-जीवन से जोड़ा गया है। वह लोक-मर्यादा और लोक-व्यवस्था का ही सूचक है। पुरुषार्थ-चतुष्टय में केवल मोक्ष ही एक ऐसा पुरुषार्थ है जिसकी सामाजिक सार्थकता विचारणीय है। 'मोक्ष' शब्द संस्कृत की 'मुच्' धातु से निष्पन्न हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ है -मुक्त करना, स्वतंत्र करना, छोड़ देना एवं ढीला कर देना, इसलिए मोक्ष का अर्थ है, मुक्ति, स्वतंत्रता, छुटकारा एवं निवृत्ति । 134 यह एक धार्मिक-सिद्धांत है, जिसका अर्थ है -संसार से निवृत्ति और आध्यात्मिक-जीवन में चिर-विश्रान्ति। मोक्ष का संबंध मुख्यतः मनुष्य की मनोवृत्ति से है। बंधन और मुक्ति -दोनों ही मनुष्य के मनोवेगों से संबंधित हैं। राग-द्वेष, आसक्ति, तृष्णा, ममत्व, अहम् आदि की मनोवृत्तियाँ ही बंधन है और इससे मुक्त होना ही मुक्ति है। मुक्ति की व्याख्या करते हुए जैन-दार्शनिकों ने कहा था कि मोह और क्षोभ से रहित आत्मा की अवस्था ही मुक्ति है। आचार्य शंकर कहते हैं –'वासनाप्रक्षयो मोक्षः । 135 वस्तुतः, मोह और क्षोभ हमारे जीवन से जुड़े हुए हैं और इसलिए मुक्ति का संबंध भी हमारे जीवन से ही है। वस्तुतः, मोक्ष मानसिक तनावों से मुक्ति है। मोक्ष या मुक्ति का अर्थ है -छुटकारा। मनुष्य को सब दुःखों से छुटकारा मिल जाए यही मोक्ष है। भारतीय साहित्य में मोक्ष के पर्यायवाची अनेक शब्द हैं। उदाहरणतः –मुक्ति, सिद्धि, निर्वाण, अमृतत्व, बोधि, विमुक्ति, विशुद्धि, कैवल्य इत्यादि। मोक्ष का अर्थ है -आध्यात्मिक-परिपूर्णता, अन्तिम लक्ष्य की प्राप्ति एवं दुःखों की समाप्ति। जो मोक्ष 133 1) मनुस्मृति, 8/15 2) जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग-2, डॉ. सागरमल जैन, पृ. 157 134 संस्कृत-हिन्दी कोश, वामन शिवराम आप्टे, पृ. 819 135 विवेकचडामणि 318 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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