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पैदा करने वाली है, और ऐसा चिन्तन करते हुए उसने समस्त कर्मों का क्षय कर लिया, कैवल्य को प्राप्त कर बिना कुछ मांगे चल दिया।
इसी प्रकार, मम्मण सेठ का उदाहरण भी प्राप्त होता है -“लोभ और तृष्णा के कारण अर्द्धरात्रि में उफनती नदी से लकड़ियाँ बाहर लाते देखकर श्रेणिक महाराजा दयार्द्र हो उठे और कहा - "जो चाहिए मांग लो।"
"राजन केवल एक बैल चाहिए।"
नृपति ने आदेश दिया -"इन्हें गोशाला में ले जाओ और जो बैल ये लेना चाहे, इन्हें दे दिया जाए, पर मम्मण सेठ को कोई बैल पसन्द नहीं आया। “राजन्! मेरे बैल जैसा आपके पास एक बैल भी नहीं", मम्मण के ये शब्द सुनकर राजा चौंक गए। “ऐसा बैल हमारी गौशाला में नहीं है, तो हम तुम्हारा बैल देखने जरुर आएंगे”, महाराजा श्रेणिक ने कहा।
महारानी चेलना एवं मंत्री परिवार के साथ सम्राट मम्मण सेठ के यहां पहुंचे। सम्राट ने गृहांगण में प्रवेश किया। लेकिन बैल दिखा नहीं। मम्मण अभ्यागतों को तल-कक्ष में ले गए और वहां परदा हटाया। भीतर का दृश्य देखते ही सबकी आँखें विस्फारित हो गईं। रत्नजटित स्वर्ण निर्मित बलद जोड़ी थी। एक बैंल का एक सींग अभी रत्नजड़ित होना शेष था। राजा ने दाँतों तले अंगुली दबा ली, और सोचने लगा - इतना धन और फिर भी इतना परिश्रम? इतनी तृष्णा ? धन्यवाद है -तेरे इस लोभ को।
4. असंतोष -
लोभ का जन्म असंतोष से होता है और आसक्ति के कारण मनुष्य की असंतोष-वृत्ति प्रबल होती जाती है। मनोहर, आकर्षक पदार्थों को देखकर मनुष्य की
- उत्तराध्ययन 32/48
55 भवतण्हा लया वृत्ता, भीमा भीमफलोदया। 56 कथा संग्रह
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